Gujarati Whatsapp Status |
Hindi Whatsapp Status
Hemant pandya
સમય તું શું મારૂં પારખું કરે? મે તો કદી તારી પરીક્ષા નથી કરી,
તું બદલાયો પણ હું એનો એજ
અડીખમ ઉભો
આવ્યા અઢળક વંટોળ વાદળ વાવાઝોડા બાઢ
પણ હું અડીખમ ઉભો
તે બધું છીનવી ને પણ જોયું.. છતા જો હું ફરી બેઠો થઈ અડીખમ ઉભો..
સમય તું શું મારૂં પારખું કરે? મે તો કદી તારી પરીક્ષા નથી કરી,
- Hemant pandya
Deepak Bundela Arymoulik
भगवत गीता जीवन अमृत
https://arymoulikdb1976.blogspot.com/2025/12/8.html
kajal jha
“तुम्हारी एक मुस्कान पर हम सब हार बैठे,
तुम्हारी हर बात में अपना संसार देख बैठे।
कहने को तो मोहब्बत एक लफ़्ज़ भर है,
पर तुम्हें चाहना हमारी आदत बन बैठे।”
- kajal jha
Dr Darshita Babubhai Shah
मैं और मेरे अह्सास
सहर
सुहानी सहर जल्द ही होगी मुझको इशारा
मिल गया हैं l
जिंदगी को आसानी से जीने का सहारा
मिल गया हैं ll
ईश का शुक्रिया करते है दिल की तसल्ली
के लिए भी l
उसके इशारे से मुकम्मल आसमान सारा
मिल गया हैं ll
"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह
S Sinha
Someone has said so wisely , To understand what LIFE is , we must visit 3 places -<br />
1.Hospital - Here we will understand nothing is more beautiful than good HEALTH<br />
2. Prison - Here we will understand that FREEDOM is the most precious thing .<br />
3 . Cemetery - Here we will realize that LIFE is worth nothing . The ground we walk on today will be our roof tomorrow . Nothing in life is PERMANENT .<br />
So be always HUMBLE , focus on Today ( present )
Razz Ratan
माँ के आँचल में जन्नत की छाया मिलती है,
उसकी ममता में हर पीड़ा सिमट जाती है।
भूखी रहकर भी जो हमें खिलाती है,
वही माँ हर हाल में मुस्कुराती है।
उसकी दुआओं से राहें आसान बनती हैं,
अंधेरे में भी उम्मीद की किरण जगती है।
माँ का प्रेम किसी शर्त का मोहताज नहीं,
वह तो ईश्वर से भी पहले याद आती है।
हर साँस में उसका त्याग बसता है,
माँ ही सच्ची भक्ति, माँ ही मेरी शक्ति है।
Razz Ratan
माँ की ममता से बढ़कर कोई वरदान नहीं।
उसके बिना ये जीवन एक पहचान नहीं।
दर्द छुपाकर जो हर पल हँसना सिखाती है,
वही माँ हमें जीने का हुनर सिखाती है।
उसकी दुआओं से किस्मत सँवर जाती है,
हर ठोकर में भी राह नज़र आती है।
माँ का त्याग शब्दों में बयाँ नहीं होता,
उसका प्रेम कभी भी कम नहीं होता।
ईश्वर भी माँ के रूप में आता है,
इसलिए माँ से बड़ा कोई भगवान नहीं होता।
Soni shakya
🙏🙏सुप्रभात 🙏🙏
🌹 आपका दिन मंगलमय हो 🌹
GANESH TEWARI 'NESH' (NASH)
रथ शरीर, बुधि सारथी, इन्द्रियाश्व मन डोर। आत्मरथी बैठा हुआ, लेकर डोर कठोर।। दोहा--371
(नैश के दोहे से उद्धृत)
----गणेश तिवारी 'नैश'
CHIRANJIT TEWARY
ओ शंकरा .. Download full song my youtube channel, Sanatani brahman7739
Harshida Joshi
જબ કોઈ ફૂલ ખીલેગા તો મૈં સમજ જાઉંગી કી તુમ મેરે સામને હો.
જબ ભી હવાએ ચલેગી તો મૈં સમજ જાઉંગી કી તુમ મુજસે કુછ કહે રહે હો.
જબ ભી બારીશ હોગી તો મૈં સમજ જાઉંગી કી તેમ મુજસે મિલને આયે હો.
જબ બર્ફ ગીરેગી તો મૈં સમજ જાઉંગી તો મૈં સમજ જાઉંગી કી તુમ ખુશ હો.
જબ હવાએ મહેકેગી તો મૈં સમજ જાઉંગી કી તુમ મેરે સાથ હો.
- Harshida Joshi
બદનામ રાજા
જય શ્રી કૃષ્ણ 🙏
Aachaarya Deepak Sikka
*OM NAMAH SHIVAY*
*Why is Khar Masa in Sagittarius (Dhanu) only?*
1. Meaning of Khar Māsa
Khar = donkey (symbol of weakness/slow movement)
Indicates reduced solar strength
Period avoided for auspicious beginnings
2. When does Khar Māsa occur?
When the Sun transits Sagittarius (Dhanu)
Also occurs in Pisces (Mīna)
These are the only two signs considered Khar Māsa
3. Why specifically Sagittarius?
(a) Astronomical reason
Sun moves toward southern declination
Sun’s heat and visibility reduce (Northern Hemisphere)
Symbolic weakening of solar energy
(b) Seasonal reason (Indian context)
Marks winter / cold season
Agricultural and social activities slow down
Nature enters a resting phase
(c) Mythological reason
Sun’s chariot normally has seven horses
During Sagittarius, horses are symbolically replaced by donkeys (khar)
Indicates loss of speed, power, and momentum
(d) Planetary reason
Sagittarius is ruled by Jupiter (Guru)
Sun (ego, authority) entering Guru’s sign signifies humility and restraint
Material beginnings are discouraged
4. Spiritual significance
Encourages nivṛtti (inner discipline)
Suitable for:
Japa
Vrata
Dana
Svādhyāya
Avoided for:
Marriage
Griha-praveśa
New ventures
5. Why not other signs?
Only Sagittarius and Pisces show:
Weak solar transit
Seasonal dormancy
Transitional cosmic energy
Conclusion
Khar Masa occurs in Sagittarius because it represents a phase of weakened solar force, seasonal withdrawal, and spiritual introspection rather than worldly expansion.
Aachaarya Deepak Sikka
ग्रहों की महादशा तथा अन्तर दशा में प्रदान किए जाने वाले शुभ अथवा अशुभ प्रभाव के कारण __
सूर्य आत्मबल, अहं और सत्ता का ग्रह है। जो व्यक्ति सत्य, धर्म और उत्तरदायित्व से जुड़ा रहता है उसके लिए सूर्य सम्मान, प्रतिष्ठा और नेतृत्व देता है, किंतु अहंकारी, अत्याचारी या कर्तव्यच्युत व्यक्ति के लिए वही सूर्य अपमान, पदहानी और अधिकार से पतन का कारण बनता है।
चंद्र मन, भावना और संवेदना का ग्रह है। संतुलित मन, शुद्ध भाव और करुणा रखने वाले के लिए चंद्र मानसिक शांति, लोकप्रियता और भावनात्मक सुरक्षा देता है, परंतु अस्थिर, भयग्रस्त या छलपूर्ण मन वाले व्यक्ति के लिए चंद्र भ्रम, अवसाद और मानसिक अशांति देता है।
मंगल साहस, ऊर्जा और कर्म का ग्रह है। अनुशासित, परिश्रमी और संयमित जीवन वाले व्यक्ति को मंगल शक्ति, रक्षा और विजय देता है, जबकि क्रोधी, हिंसक या अव्यवस्थित जीवन शैली वाले व्यक्ति को दुर्घटना, विवाद और शारीरिक कष्ट देता है।
बुध बुद्धि, वाणी और विवेक का ग्रह है। सत्यनिष्ठ, अध्ययनशील और स्पष्ट सोच वाले व्यक्ति के लिए बुध सफलता, संवाद-कौशल और व्यावहारिक बुद्धि देता है, किंतु छल, झूठ, चालाकी और गलत तर्क का प्रयोग करने वालों के लिए वही बुध भ्रम, वाणी दोष और निर्णयों में हानि देता है।
गुरु ज्ञान, धर्म और मार्गदर्शन का ग्रह है। श्रद्धा, नैतिकता और गुरु-भाव रखने वालों को गुरु उन्नति, संरक्षण और सद्बुद्धि देता है, परंतु अहंकारी, अधार्मिक या ज्ञान का दुरुपयोग करने वालों के लिए गुरु पतन, अवसरों की हानि और मार्गभ्रष्टता का कारण बनता है।
शुक्र सुख, भोग और संबंधों का ग्रह है। संयम, प्रेम और सौंदर्य-बोध रखने वालों को शुक्र वैभव, प्रेम और कला-सुख देता है, लेकिन भोग-विलास, वासना और अनैतिक संबंधों में लिप्त व्यक्ति के लिए शुक्र रोग, संबंध-विच्छेद और अपयश देता है।
शनि कर्म, अनुशासन और न्याय का ग्रह है। परिश्रम, धैर्य और कर्तव्यनिष्ठा रखने वालों के लिए शनि स्थायित्व, सम्मान और दीर्घकालीन सफलता देता है, जबकि आलसी, छलपूर्ण और जिम्मेदारियों से भागने वालों के लिए वही शनि विलंब, दंड और कठोर अनुभव देता है।
राहु इच्छाओं, भ्रम और असामान्यता का ग्रह है। शोध, साधना और नवीन सोच वाले व्यक्ति के लिए राहु अचानक उन्नति और विशिष्ट पहचान देता है, परंतु नशा, जुआ, लालच और छल में लिप्त व्यक्ति के लिए राहु पतन, बदनामी और आत्मविनाश की ओर ले जाता है।
केतु वैराग्य, मोक्ष और अंतर्मुखता का ग्रह है। आत्मचिंतन, साधना और सत्य की खोज करने वालों को केतु गहन ज्ञान और आध्यात्मिक स्पष्टता देता है, किंतु कर्तव्य से पलायन और भ्रम में रहने वालों के लिए केतु अलगाव, दिशाहीनता और जीवन में शून्यता का अनुभव कराता है।
Aachaarya Deepak Sikka
पंचक आज से होंगे शुरू
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पांच दिनों के विशेष नक्षत्र संयोग को पंचक कहते हैं। इन पांच दिनों को शुभ और अशुभ कार्यों के लिए देखा जाता है। पंचक के दौरान कुछ कार्य करना बेहद अशुभ माना जाता है। पंचक पंचांग का विशेष भाग है।
क्या है पंचक
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जब चंद्रमा कुंभ से मीन राशि में गुजरता है, तो पंचक का प्रभाव होता है। आमतौर पर इसे पांच महत्वपूर्ण नक्षत्रों में चंद्रमा के गुजरने का समय माना जा सकता है। ये नक्षत्र है - धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद, और रेवती। इस अवधि में कोई भी शुभ कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश, या नए निर्माण कार्य से बचना चाहिए।
पंचक अशुभ क्यों माना जाता है?
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कहते हैं पंचक के समय किसी तरह के शुभ काम का परिणाम नहीं मिलता है और उस काम को पांच बार करना पड़ता है। हिंदू धर्म में जब किसी की मृत्यु भी पंचक के दौरान होती है, तो विशेष पूजा पाठ करके पंचक की शांति की जाती है। पंचक के दौरान ये काम बिल्कुल ना करें।
धनिष्ठा नक्षत्र: जरूरी ना हों, तो यात्रा को टालें। गैस, पेट्रोल आदि का काम ना करवाएं। नए घर का वास्तु प्रवेश ना करें।
शतभिषा नक्षत्र: इस समय नया बिजनेस शुरू ना करें। पार्टनरशिप का कोई काम करने से भी बचें।
पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र: इस नक्षत्र में विवाह, नए घर का वास्तु या नई गाड़ी खरीदते हैं, तो यह शुभ नहीं होता है। कार्य करने वाला व्यक्ति बीमार हो जाता है।
उत्तराभाद्रपद नक्षत्र: इस दौरान कोई नया काम शुरू करते हैं, तो असफलता मिलती है।
रेवती नक्षत्र: इस समय काम करने से आर्थइक हानि होने की आशंका बनी रहती है। रेवती भी एक गंडमूल नक्षत्र है और इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति को हर दूसरे महीने बगलामुखी पूजा करनी होती है।
पंचक के प्रकार और उनका प्रभाव
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पंचांग के अनुसार पंचक एक विशेष समय होता है। इसमें किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले सावधानी बरती जाती है। यह पांच दिनों की अवधि होती है। आइए, पंचक के विभिन्न प्रकारों को विस्तार से समझते हैं और जानते हैं कि किस पंचक में कौन-कौन से कार्य वर्जित माने गए हैं।
पंचक के पांच प्रकार-
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रोग पंचक यह पंचक तब होता है जब पंचक की शुरुआत रविवार से होती है। इस पंचक के दौरान यज्ञ या धार्मिक अनुष्ठान जैसे कार्य करने से बचना चाहिए।
राज्य या नृप पंचक यदि पंचक की शुरुआत सोमवार से होती है, तो इसे राज्य पंचक या नृप पंचक कहा जाता है। इस समय नौकरी या नई सरकारी योजनाओं में प्रवेश करना वर्जित माना जाता है।
अग्नि पंचक मंगलवार से शुरू होने वाला पंचक अग्नि पंचक कहलाता है। इस समय घर का निर्माण, गृह प्रवेश, या किसी प्रकार की नई संपत्ति से जुड़े कार्य नहीं किए जाने चाहिए।
चोर पंचक शुक्रवार को शुरू होने वाला पंचक चोर पंचक कहलाता है। इस समय यात्रा करने से बचा जाता है, क्योंकि चोरी या धन हानि की आशंका रहती है।
मृत्यु पंचक पंचक यदि शनिवार से शुरू होता है, तो इसे मृत्यु पंचक कहते हैं। इस पंचक के दौरान विवाह, सगाई, और अन्य शुभ कार्य वर्जित माने जाते हैं।
पंचक के दौरान करें ये उपाय
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पंचक के दौरान कुछ आसान उपाय करके आप इस समय को शांतिपूर्ण और शुभ बना सकते हैं। पंचक के दौरान निम्नलिखित 5 उपाय करना विशेष रूप से लाभकारी माना जाता है:
भगवान विष्णु और भगवान शिव की पूजा करें।
जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र, या धन का दान करें।
पंचक के समय में असहाय गायों को हरा चारा खिलाने से शुभ फल प्राप्त होते हैं
इस समय आप घर या मंदिरों में विशेष पूजा, अनुष्ठान, या हवन करवा सकते हैं।
पंचक के दौरान नाखून और बाल काटने से बचना चाहिए।
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Aachaarya Deepak Sikka
ब्रह्मांड आपकी व्यक्तिगत इच्छाओं या जरूरतों को नहीं समझता, बल्कि आपकी फ्रीक्वेंसी को पहचानता है।
आप जिस फ्रीक्वेंसी पर वाइब्रेट कर रहे होते हैं, उसी के अनुरूप अनुभव आकर्षित करते हैं।
यदि आप डर, अपराधबोध या कमी की भावना में जी रहे हैं, तो नकारात्मक अनुभव आपकी ओर खिंचते हैं।
इसके विपरीत, प्रेम, आनंद और समृद्धि की फ्रीक्वेंसी पर होने से जीवन में सकारात्मक अनुभव आते हैं।
यह ठीक रेडियो ट्यून करने जैसा है-जिस फ्रीक्वेंसी पर ट्यून करेंगे, वही संगीत सुनेंगे। इसलिए, अगर आप अपनी जिंदगी बदलना चाहते हैं, तो अपनी मानसिकता और ऊर्जा बदलें।
ब्रह्मांड हमेशा आपकी ऊर्जा का प्रतिबिंब लौटाता है। सकारात्मक सोच और उच्च फ्रीक्वेंसी जीवन में समृद्धि और सुख को
आकर्षित करती है।
Aachaarya Deepak Sikka
*ॐ नमः शिवाय*
*वेदों को कण्ठस्थ करना, तथा वैदिक कर्मकाण्ड करना,भगवान की ही भक्ति है।*
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*पद्मपुराण के,पातालखण्ड के,85 वें अध्याय के,5 वें और छठवें श्लोक में,देवर्षि नारदजी ने,महाराज अम्बरीष जी को,वैशाखमास का माहात्म्य श्रवण कराने के पश्चात,महाराज अम्बरीष को,भक्ति के भेद बताते हुए कहा कि-*
*लौकिकी वैदिकी चापि भवेदाध्यात्मिकी तथा।* *ध्यानधारणया बुद्ध्या*
*वेदानां स्मरणं हि यत्।।5।।*
सूत जी ने कहा कि- हे ऋषियो! भक्ताग्रगण्य महाराज अम्बरीष ने,नारद जी के मुखारविन्द से, वैशाख मास का माहात्म्य श्रवण करने के पश्चात,नारद जी से, भक्तिविषयक प्रश्न करते हुए कहा कि-
हे देवर्षि नारदजी! आप के तो हृदय में,ज्ञान और भक्ति के सहित भगवान नारायण ही निवास करते हैं।
ज्ञान और भक्ति के अगाध तत्त्व को जाननेवाले एकमात्र आप ही हैं। आप तो, ज्ञानियों से तथा भक्तों से सर्वदा ही सत्संग करते रहते हैं,तथा भगवान के नाम का संकीर्तन भी निरन्तर करते रहते हैं।
आप तो,ज्ञान और भक्ति,दोनों के विग्रहस्वरूप ही हैं।
मैं,आपके मुखारविन्द से,भक्ति के स्वरूप का श्रवण करना चाहता हूं।
नारद जी ने कहा कि-
*लौकिकी वैदिकी चापि भवेदाध्यात्मिकी तथा।।*
****************
भक्ति,तीन प्रकार की होतीं हैं।
*(1) लौकिकी* *(2)वैदिकी तथा* *(3) आध्यात्मिकी।*
*मनोवाक्कायसम्भवा।*
****************
ये तीनों प्रकार की भक्ति,मन से,वाक् अर्थात वाणी से तथा काया अर्थात शरीर से होतीं हैं।
भगवान को उद्देश्य करके,व्रत,उपवास, करना,ये मानसिक संकल्प की दृढ़ता पूर्वक भक्ति है।
भगवान के नाम का जप करना,ये भी मानसिक भक्ति है। जिह्वा से भगवान के नाम का संकीर्तन करना,ये वाक् अर्थात वाणी की भक्ति है। भगवान के मंदिर को शुद्ध स्वच्छ रखते हुए,उनके लिए विविध प्रकार के पुष्प,पुष्पमाला,आभूषण,वस्त्र,तथा स्वादिष्ट भोजन आदि निवेदन करना,ये शारीरिक भक्ति है। क्यों कि-बिना शारीरिक परिश्रम के,धन नहीं आता है। शारीरिक परिश्रम करके,धन एकत्रित करके,भगवान के लिए प्रियातिप्रिय वस्तुओं को निवेदित करना,ये शारीरिक भक्ति है।
कायिक,वाचिक तथा मानसिक भक्ति में, एकमात्र भगवान ही उद्देश्य रहते हैं।
लौकिकी वैदिकी इन दोनों प्रकार की भक्ति में, सांसारिक सुखों को प्राप्त करने के उद्देश्य से,की गई भगवान की भक्ति,लौकिकी भक्ति कही जाती है।
*ध्यानधारणबुद्धया वेदानां स्मरणं हि यत्।।*
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लौकिकी भक्ति में,ध्यान से,आध्यात्मिकी भक्ति में,धारणा से,तथा वैदिकी भक्ति में,बुद्धि से भक्ति समझना चाहिए।
*वेदानां स्मरणं हि यत्।*
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वेदों का स्मरण करना,वैदिकी भक्ति है। वेदों को,बुद्धि में स्थिर करना,भी भगवान की भक्ति है। भगवत्स्वरूप वेद हैं,तथा वेदों के मन्त्रों से ही भगवान के स्वरूप का यथार्थज्ञान होता है।
वेदों के अध्ययन से,ज्ञान से ही भगवान के विषय का ज्ञान होता है।
इसी को "बुद्धया"शब्द से वैदिकी भक्ति कहा जाता है।
नेत्र,नासिका,कर्ण,त्वचा और जिह्वा,इन पांचों इन्द्रियों को नियंत्रित करके,एकाग्रचित्त होकर, वेदों का निरन्तर अभ्यास करते हुए,उनके प्रयोग की विधि का ज्ञान करके,देवतात्मक भगवान के लिए,यज्ञ आदि करना "वैदिकी" भक्ति है।
*मंत्रवेदसमुच्चारैरविश्रान्तविचिन्तनै:।।6।।*
वेद के मंत्रों का शुद्ध उच्चारण करते हुए,उन मंत्रों का, *अविश्रान्त,अर्थात विना विश्राम के,* निरन्तर चिन्तन करना ही वैदिकी भक्ति है।
*जब कोई ब्राह्मण,मंत्रों का उच्चारण करते हुए,कण्ठस्थ करते हैं तो,उनकी बुद्धि में, सांसारिक अन्य किसी विषय का चिन्तन नहीं होता है।*
जिस काल में,वेदों के अध्ययन का विधान है,उसी काल में,वेदों का उच्चारण करने के लिए, ब्रह्ममुहुर्त में,उठकर,शौच,स्नान, शुद्ध वस्त्र धारण करके, ध्यानपूर्वक बुद्धि में स्मरण शक्ति के बलपर, निरन्तर ही वेद मंत्रों का उच्चारण करना,यह भी भगवान की भक्ति है।
*बुद्धि को नियमों में नियंत्रित करना,मन को नियमों में नियंत्रित करना,तथा शुद्ध, सात्विक भोजन आदि करना,ये सभी, वैदिकी भक्ति है।*
इन्द्र नवग्रह आदि देवताओं को,वैदिक विधि के अनुसार,विविध प्रकार के संयम करते हुए, देवताओं के सहित भगवान को प्रसन्न करना,वैदिकी भक्ति है।
*इसका तात्पर्य यह है कि- सांसारिक सुखों को त्यागकर,नियम संयम पूर्वक,एकमात्र भगवान का ध्यान करना,धारणा और ध्यान है।*
*ध्यान और धारणा,दोनों ही आध्यात्मिकी भक्ति है।*
*संयम नियम पूर्वक,गुरु की सेवा करते हुए,वेदों को शुद्ध उच्चारण के साथ साथ,उसके प्रयोगविधि को जानकर,उन मंत्रों का,सामग्री सहित उपयोग करना,भक्ति है।*
*अपनी अपनी शक्ति के अनुसार,भक्तगण, भगवान की भक्ति करके,भगवान के प्रिय हो जाते हैं।*
*इसका अभिप्राय यह है कि- तनसुखों का परित्याग करके,भगवान को उद्देश्य करके,आत्मप्राप्ति को उद्देश्य करके,किए जानेवाले आध्यात्मिक वैदिकी विधि को आत्मसात करना ही भगवान की भक्ति है।
Aachaarya Deepak Sikka
*ॐ नमः शिवाय*
अपनी पत्नी के विश्वासघात ने राजा भर्तृहरि को जगा दिया।
प्राचीन उज्जैन में बड़े प्रतापी राजा हुए राजा भर्तृहरि जिनके पास विशाल साम्राज्य था। उनकी पिंगला नाम की अत्यंत रूपवती रानी थी। राजा को रानी के ऊपर अटूट विश्वास एवं प्रेम था परंतु वह रानी राजा के बदले एक अश्वपाल से प्रेम करती थी और वह अश्वपाल भी रानी के बदले राजनर्तकी को चाहता था। वह राजनर्तकी अश्वपाल की जगह राजा भर्तृहरि को स्नेह करती थी।
उस समय उज्जैन में एक तपस्वी गुरु गोरखनाथ का आगमन हुआ। गोरखनाथ राजा के दरबार में पहुंचे। भर्तृहरि ने गोरखनाथ का उचित आदर-सत्कार किया। इससे तपस्वी गुरु अति प्रसन्न हुए। प्रसन्न होकर गोरखनाथ ने राजा एक फल दिया और कहा कि यह खाने से वह सदैव जवान बने रहेंगे, कभी बुढ़ापा नहीं आएगा, सदैव सुंदरता बनी रहेगी।
राजा ने रानी के मृत्यु के वियोग के भय से उसे अमर बनाने के लिए वह फल खाने के लिए रानी को दिया। परंतु मोहवश रानी ने वह फल अश्वपाल को दे दिया। अश्वपाल ने वह राजनर्तकी को दे दिया। किन्तु राजनर्तकी ने जब वह फल राजा को दिया, तभी यह सारा सत्य बाहर आया। रानी की बेवफाई को देखकर राजा के पैरों तले की जमीन खिसक गयी।
राजा भर्तृहरि ने बाद में अपने नीतिशतक में इस घटना के बारे में लिखा हैः
*यां चिन्तयामि सततं मयि सा विरक्ता।*
*साप्यन्यमिच्छति जनं स जनोऽन्यसक्तः।*
*अस्मत्कृते च परितुष्यति काचिदन्या।*
*धिक् तां च तं च मदनं च इमां च मां च।।*
'मैं जिसका सतत चिंतन करता हूँ वह (पिंगला) मेरे प्रति उदासीन है। वह (पिंगला) भी जिसको चाहती है वह (अश्वपाल) तो कोई दूसरी ही स्त्री (राजनर्तकी) में आसक्त है। वह (राजनर्तकी) मेरे प्रति स्नेहभाव रखती है। उस (पिंगला) को धिक्कार है ! उस अश्वपाल को धिक्कार है ! उस (राजनर्तकी) को धिक्कार है ! उस कामदेव को धिक्कार है और मुझे भी धिक्कार है !'
उनके अंतरचक्षु खुल गये। उन्होंने रनिवास, सिंहासन और राजपाट सब छोड़कर विवेकरूपी कटार से तृष्णा एवं राग की बेल को एक ही झटके में काट दिया। फिर जंगलों में भटकते-भटकते भर्तृहरि ने गुरु गोरखनाथ के चरणों में निवेदन कियाः
"हे नाथ ! मैंने सोने की थाली में भोजन करके देख लिया और चाँदी के रथ में घूमकर भी देख लिया। यह सब करने में मैंने अपनी आयुष्य को बरबाद कर दिया। अब मैं यह अच्छी तरह जान चुका हूँ कि ये भोग तो बल, तेज, तंदरुस्ती और आयुष्य का नाश कर डालते हैं। मनुष्य की वास्तविक उन्नति भोग-पूर्ति में नहीं वरन् योग में है। इसलिए आप मुझ पर प्रसन्न होकर योगदीक्षा देने की कृपा करिये।"
राजा भर्तृहरि की उत्कट इच्छा एवं वैराग्य को देखकर गोरखनाथ ने उन्हें दीक्षा दी एवं तीर्थाटन की आज्ञा दी।
तीर्थाटन करते-करते, साधना करते-करते भर्तृहरि ने आत्मानुभव पा लिया। उसके बाद कलम उठाकर उन्होंने सौ-सौ श्लोक की तीन छोटी-छोटी पुस्तकें लिखीं-
*वैराग्यशतक, नीतिशतक एवं शृंगारशतक।*
ये आज विश्व-साहित्य के अनमोल रत्न हैं।
इस प्रकार जिसके पूर्वजन्मों के संस्कार अथवा पुण्य जगे हों तब कोई वचन, कथा अथवा घटना उसके हृदय को छू जाती है और उसके जीवन में विवेक-वैराग्य जाग उठता है, उसके जीवन में महान् परिवर्तन आ जाता है
Aachaarya Deepak Sikka
*ॐ नमः शिवाय*
*!!लक्ष्य!!*
*मार्ग से भटकाने वाले लोगों पर ध्यान न देकर अपने निर्धारित लक्ष्य की और बढ़ें।*
एक बार स्वामी विवेकानंद रेल से कहीं जा रहे थे। वह जिस डिब्बे में सफर कर रहे थे, उसी डिब्बे में कुछ अंग्रेज यात्री भी थे। उन अंग्रेजों को साधुओं से बहुत चिढ़ थी। वे साधुओं की भर-पेट निंदा कर रहे थे। साथ वाले साधु यात्री को भी गाली दे रहे थे। उनकी सोच थी कि चूँकि साधू अंग्रेजी नहीं जानते, इसलिए उन अंग्रेजों की बातों को नहीं समझ रहे होंगे। इसलिए उन अंग्रेजो ने आपसी बातचीत में साधुओं को कई बार भला-बुरा कहा। हालांकि उन दिनों की हकीकत भी थी कि अंग्रेजी जानने वाले साधु होते भी नहीं थे।
रास्ते में एक बड़ा स्टेशन आया। उस स्टेशन पर विवेकानंद के स्वागत में हजारों लोग उपस्थित थे, जिनमें विद्वान् एवं अधिकारी भी थे। यहाँ उपस्थित लोगों को सम्बोधित करने के बाद अंग्रेजी में पूछे गए प्रश्नों के उत्तर स्वामीजी अंग्रेजी में ही दे रहे थे। इतनी अच्छी अंग्रेजी बोलते देखकर उन अंग्रेज यात्रियों को सांप सूंघ गया, जो रेल में उनकी बुराई कर रहे थे।
अवसर मिलने पर वे विवेकानंद के पास आये और उनसे नम्रतापूर्वक पूछा– आपने हम लोगों की बात सुनी। आपने बुरा माना होगा ?
स्वामीजी ने सहज शालीनता से कहा– “मेरा मस्तिष्क अपने ही कार्यों में इतना अधिक व्यस्त था कि आप लोगों की बात सुनी भी पर उन पर ध्यान देने और उनका बुरा मानने का अवसर ही नहीं मिला।” स्वामीजी की यह जवाब सुनकर अंग्रेजों का सिर शर्म से झुक गया और उन्होंने चरणों में झुककर उनकी शिष्यता स्वीकार कर ली।
*शिक्षा:—*
हमें अपने आसपास कुछ नकारात्मक लोग जरूर मिलेंगे। वे हमें हमारे लक्ष्य से भटकाने की कोशिश करेंगे। लेकिन हमें ऐसे लोगों की बातों पर ध्यान न देकर सदैव अपने लक्ष्य पर ध्यान देना चाहिए।
Aachaarya Deepak Sikka
*ॐ नमः शिवाय*
*-सच्ची तथा सही साधक की सिद्धियाँ-*
कोई भी साधक अपने इष्ट के निरंतर नाम जप से यहीं अनुभूति का आभास करता है
१- शरीर में हल्कापन और मन में उत्साह होता है ।
२- शरीर में से एक विशेष प्रकार की सुगन्ध आने लगती है ।
३- त्वचा पर चिकनाई और कोमलता का अंश बढ़ जाता है ।
४- तामसिक आहार-विहार से घृणा बढ़ जाती है और सात्त्विक दिशा में मन लगने लगता है ।
५- स्वार्थ का कम और परमार्थ का अधिक ध्यान रहता है ।
६- नेत्रों में तेज झलकने लगता है ।
७- किसी व्यक्ति या कार्य के विषय में वह जरा भी विचार करता है, तो उसके सम्बन्ध में बहुत-सी ऐसी बातें स्वयमेव प्रतिभासित होती हैं, जो परीक्षा करने पर ठीक निकलती हैं।
८- दूसरों के मन के भाव जान लेने में देर नहीं लगती ।
९ - भविष्य में घटित होने वाली बातों का पूर्वाभास मिलने लगता है ।
१० - शाप या आशीर्वाद सफल होने लगते हैं। अपनी गुप्त शक्तियों से वह दूसरों का बहुत कुछ लाभ या बुरा कर सकता है।
Aachaarya Deepak Sikka
*ॐ नमः शिवाय*
*गौ,तुलसी,और पीपल की प्रदक्षिणा करने से, तीर्थयात्रा का फल प्राप्त होता है।*
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*पद्मपुराण के,स्वर्गखण्ड के,40 वें अध्याय के,9 वें श्लोक में,नारद जी ने, धर्मराज युधिष्ठिर को,गौ,तुलसी तथा अश्वत्थ अर्थात पीपल के वृक्ष का माहात्म्य बताते हुए कहा कि-*
*अश्वत्थस्य तुलस्याश्च गवां कुर्यात् प्रदक्षिणाम्।*
*सर्वतीर्थं फलं प्राप्य विष्णुलोके महीयते।।*
प्रत्येक धार्मिक स्त्री पुरुषों को,अपने जीवन के कर्तव्य का ज्ञान होना चाहिए। शास्त्रों में, प्रत्येक स्त्री पुरुष के कर्तव्यों का वर्णन है।
हमको क्या करना चाहिए,यदि यही ज्ञान नहीं है तो,ऐसे अनभिज्ञ धार्मिक स्त्री पुरुष तो अपनी स्वेच्छा से,अथवा किसी अन्य अज्ञानी धार्मिक स्त्री पुरुषों की क्रिया को देखकर कुछ भी असावधानी पूर्वक करते रहेंगे,तो सत्कर्म का जैसा फल प्राप्त होना चाहिए था,जितना फल प्राप्त होना चाहिए था,तथा जितने समय में फल प्राप्त होना चाहिए था,वह फल प्राप्त नहीं होने पर,अश्रद्धा उत्पन्न हो जाती है। यदि एकबार अश्रद्धा और अविश्वास हुआ तो, धार्मिक कर्म करने की इच्छा ही समाप्त हो जाएगी।
यदि धार्मिक कार्यों को करने की इच्छा ही समाप्त हो गई तो, भविष्य में,जो भी कुछ अच्छा होनेवाला होगा,वह भी नहीं होगा।
*प्रत्येक धार्मिक श्रद्धालु, स्त्री पुरुषों को,शास्त्रों के अनुसार विधि करते हुए, धैर्यपूर्वक धर्माचरण सत्कर्म आदि करना चाहिए।*
सत्कर्म के सम्पूर्ण फल की अप्राप्ति में,सर्वप्रथम तो अज्ञान,अनभिज्ञता ही कारण है। इसके पश्चात तो अनेकों प्रकार के कारण हो सकते हैं। किन्तु मुख्य कारण तो अज्ञान ही है।
अति अल्प प्रयास और अभ्यास से, पुण्य फल की प्राप्ति होती है। शास्त्रों में,जैसे जैसे व्यक्ति होते हैं,उनके लिए,वैसा वैसा ही विधान प्राप्त होता है।
यदि कोई धार्मिक स्त्री पुरुष, तीर्थयात्रा करने में शारीरिक बल से क्षीण हैं। या शारीरिक रोग के कारण या मानसिक ताप के कारण, तीर्थयात्रा करने में असमर्थ हैं तो,उनके लिए भी, शास्त्रों में,शक्ति सामर्थ्य को देखते हुए विधान किया गया है।
*जिसके जितना बल।*
*उसको उतना फल।*
अब आइए,कल्याण के,इस सरलतम उपाय स्वरूप शास्त्रीय विधि पर विचार करते हैं।
*अश्वत्थस्य तुलस्याश्च गवां कुर्यात् प्रदक्षिणाम् ।।*
******************
*अश्वत्थस्य,अर्थात पीपल की,तुलस्याश्च,अर्थात तुलसी की,गवाम् अर्थात गौ की,प्रदक्षिणाम् कुर्यात् अर्थात प्रदक्षिणा अर्थात कुर्यात् अर्थात करना चाहिए।*
अब इससे अच्छा सरलतम उपाय और क्या हो सकता है! तुलसी अपने गृह में ही होती है। पीपल भी प्रायः सर्वत्र प्राप्त होता है। गौ माता भी प्रायः सर्वत्र प्राप्त होतीं हैं।
यदि इन तीनों की प्रदक्षिणा की जाए तो,उसका फल भी देख लीजिए!
*सर्वतीर्थं फलं प्राप्य विष्णुलोके महीयते।।*
****************
गौ,तुलसी तथा *अश्वत्थ अर्थात पीपल* की प्रदक्षिणा करनेवाले स्त्री पुरुषों को, *सर्वतीर्थम् अर्थात भारत के जितने भी तीर्थ हैं,* चारों धाम,द्वादश ज्योतिर्लिंग आदि सभी तीर्थों में दर्शन करने का जो फल होता है,गंगा आदि दिव्य नदियों में स्नान आदि करने का जो फल प्राप्त होता है,वे उनकी प्रदक्षिणा करके उन्हीं फलों को प्राप्त कर लेते हैं।
यदि कोई निर्धन,निर्बल निर्बुद्धि स्त्री पुरुष हैं,उनको मात्र इतनी ही शिक्षा दी जाए कि- गौ,तुलसी और पीपल की प्रदक्षिणा किया करो, और यदि वह इतना कार्य,सदा ही करते हैं तो,जो धनवानों को,सबलों,समर्थों को सभी तीर्थों की प्रदक्षिणा का फल प्राप्त होता है,वही फल,उन निर्धन,निर्बल निर्बुद्धि स्त्री पुरुषों को गौ,तुलसी और पीपल की प्रदक्षिणा करने मात्र से फल प्राप्त होगा।
*यदि कोई सबल,धनवान बलवान विद्वान व्यक्ति भी इनकी प्रदक्षिणा करेंगे तो,उनको भी वही सर्वतीर्थाटन करने फल प्राप्त होगा, इसमें कोई संदेह नहीं है।*
अब इस शरीर की पूर्णायु के पश्चात का फल सुनिए!
*विष्णुलोके महीयते।*
*****************
*गौ, तुलसी और पीपल की प्रदक्षिणा कर्ताओं को,शरीर त्याग के पश्चात,विष्णुलोक अर्थात भगवान का धाम प्राप्त होगा।*
*तुलसी भी भगवान विष्णु को अतिप्रिय है। गौ माता की रक्षा के लिए तो वे अवतार लेकर ही आते हैं। अश्वत्थ अर्थात पीपल तो उनका ही स्वरूप है।*
*इसका तात्पर्य यह है कि- भगवान को प्रसन्न करने के लिए तथा अपना कल्याण करने के लिए,अतिलघु,सरलतम उपाय, शास्त्रों में, ऋषियों मुनियों ने बताए हैं। यदि कोई स्त्री पुरुष,इतना सरल उपाय करके भी,अपना कल्याण नहीं कर सकते हैं तो,वह मनुष्य ही कैसे कहा जाएगा!
Aachaarya Deepak Sikka
*ॐ नमः शिवाय*
*आज की कथा*
*ठाकुर जी के पागल*
एक बार नामदेव जी अपनी कुटिया के बाहर सोये हुए थे तभी अचानक उनकी कुटिया में आग लग गयी।
नामदेव जी ने सोचा आज तो ठाकुर जी अग्नि के रूप में आये हैं तो उन्होंने जो भी सामान बाहर रखा हुआ था वो भी आग में ही डाल दिया।
तब लोगों ने देखा और जैसे तैसे आग बुझा दी और चले गये।
ठाकुर जी ने सोचा इसने तो मुझे सब कुछ अर्पण कर दिया है ठाकुर जी ने उनके लिए बहुत ही सुन्दर कुटिया बना दी।
सुबह लोगों ने देखा कि वहाँ तो बहुत सुंदर कुटिया बनी हुई है !
उन्होंने नामदेव जी को कहा रात को तो आपकी कुटिया में आग लग गयी थी फिर ये इतनी सुंदर कुटिया कैसे बन गयी? हमे भी इसका तरीका बता दीजिए।
नामदेव जी ने कहा सबसे पहले तो अपनी कुटिया में आग लगाओ फिर जो भी सामान बचा हो वो भी उसमे डाल दो।
लोगो ने उन्हें ऊपर से नीचे तक देखा और कहा अजीब पागल है।
नामदेव जी ने कहा.. वो ठाकुर तो पागलों के ही घर बनाता है।
Aachaarya Deepak Sikka
*ॐ नमः शिवाय*
*आज की कथा*
*कुआं*
एक बार राजा भोज के दरबार में एक सवाल उठा कि *ऐसा कौन सा कुआं है जिसमें गिरने के बाद आदमी बाहर नहीं निकल पाता?* इस प्रश्न का उत्तर कोई नहीं दे पाया। आखिर में राजा भोज ने मंत्री से कहा कि *इस प्रश्न का उत्तर सात दिनों के अंदर लेकर आओ, वरना आपको अभी तक जो इनाम धन आदि दिया गया है,वापस ले लिए जायेंगे तथा इस नगरी को छोड़कर दूसरी जगह जाना होगा।*
छः दिन बीत चुके थे। राज पंडित को जबाव नहीं मिला था। निराश होकर वह जंगल की तरफ गया। वहां उसकी भेंट एक गड़रिए से हुई। गड़रिए ने पूछा - *आप तो राजपंडित हैं, राजा के दुलारे हो फिर चेहरे पर इतनी उदासी क्यों?*
यह गड़रिया मेरा क्या मार्गदर्शन करेगा? सोचकर पंडित ने कुछ नहीं कहा। इसपर गडरिए ने पुनः उदासी का कारण पूछते हुए कहा - *पंडित जी हम भी सत्संगी हैं,हो सकता है आपके प्रश्न का जवाब मेरे पास हो, अतः नि:संकोच कहिए।* राज पंडित ने प्रश्न बता दिया और कहा कि अगर कलतक प्रश्न का जवाब नहीं मिला तो राजा नगर से निकाल देगा।
गड़रिया बोला - *मेरे पास पारस है उससे खूब सोना बनाओ। एक भोज क्या लाखों भोज तेरे पीछे घूमेंगे।बस,पारस देने से पहले मेरी एक शर्त माननी होगी कि तुझे मेरा चेला बनना पड़ेगा।*
राज पंडित के अंदर पहले तो अहंकार जागा कि *दो कौड़ी के गड़रिए का चेला बनूं?* लेकिन स्वार्थ पूर्ति हेतु चेला बनने के लिए तैयार हो गया।
गड़रिया बोला - *पहले भेड़ का दूध पीओ फिर चेले बनो।* राजपंडित ने कहा कि *यदि ब्राह्मण भेड़ का दूध पीयेगा तो उसकी बुद्धि मारी जायेगी।* मैं दूध नहीं पीऊंगा। तो जाओ, मैं पारस नहीं दूंगा - गड़रिया बोला।
राज पंडित बोला - ठीक है,दूध पीने को तैयार हूं,आगे क्या करना है?
गड़रिया बोला- *अब तो पहले मैं दूध को झूठा करूंगा फिर तुम्हें पीना पड़ेगा।*
राजपंडित ने कहा - *तू तो हद करता है! ब्राह्मण को झूठा पिलायेगा?* तो जाओ, गड़रिया बोला।
राज पंडित बोला - *मैं तैयार हूं झूठा दूध पीने को ।*
गड़रिया बोला- *वह बात गयी।अब तो सामने जो मरे हुए इंसान की खोपड़ी का कंकाल पड़ा है, उसमें मैं दूध दोहूंगा,उसको झूठा करूंगा, कुत्ते को चटवाऊंगा फिर तुम्हें पिलाऊंगा।तब मिलेगा पारस। नहीं तो अपना रास्ता लीजिए।*
राजपंडित ने खूब विचार कर कहा- *है तो बड़ा कठिन लेकिन मैं तैयार हूं।*
गड़रिया बोला- *मिल गया जवाब। यही तो कुआं है लोभ का, तृष्णा का जिसमें आदमी गिरता जाता है और फिर कभी नहीं निकलता। जैसे कि तुम पारस को पाने के लिए इस लोभ रूपी कुएं में गिरते चले गए।*
Aachaarya Deepak Sikka
*ॐ नमः शिवाय*
*भगवान की चिट्ठी*
एक घर में मां बेटी रहती थी रात का समय था। दरवाजे पर खटखटाने की आवाज आई मांँ और बेटी बहुत गरीब थे। छोटे से घर में रहते थे बेटी ने दरवाजा खोला तो वहां पर कोई नहीं था। नीचे देखा तो चिट्ठी पड़ी हुई थी। बेटी ने चिट्ठी खोलकर पढ़ी, तो हाथ कांपने लगा और जोर से चिल्लाई मांँ इधर आओ चिट्ठी में लिखा था बेटी मैं तुम्हारे घर आऊंगा तुमसे और तुम्हारी मांँ से मिलने और नाम की जगह नीचे लिखा था भगवान।
मांँ ने कहा यह शायद हमारी गली के किसी लड़के ने तुम्हें छेड़ने के लिए बहुत ही गंदी शरारत की है। लेकिन बेटी को मांँ की बात पर यकीन ही नहीं हो रहा था। बेटी बोली मांँ पता नहीं क्यों मुझे यह सच लग रहा है। मांँ को मना कर बेटी और मांँ दोनों तैयारी में लग गई, घर भले ही छोटा सा था लेकिन दिल बहुत अमीर।
घर पर एक चटाई थी मेहमानों के लिए.... निकाल कर बिछा दी और रसोई घर में जाकर देखा तो खाने का एक दाना नहीं था। बेटी और मां दोनों गहरी सोच में पड़ गए । यदि भगवान सच में आ गए तो खाने में कुछ नहीं दे पाएंगे। आगे पीछे का कुछ नहीं सोचा बचत के 300 रुपए बेटी के पास थे। पैसे लेकर वह छाता और कंबल लेकर किराने की दुकान के लिए निकल पड़ी। बारिश होने वाली थी और ठंड भी बहुत ज्यादा थी एक पैकेट दूध एक मिठाई का बॉक्स और कुल 200 रुपये की चीजें खरीद कर वापस लौट आए। क्योंकि उन्हें लगा शायद भगवान घर पर पहुंच गए होंगे घर से थोड़ी दूर पहुंची तो देखा कि जोर से बारिश शुरू हो गई और सड़क किनारे एक पति-पत्नी खड़े थे और ऑटो पास से गुजरा तो लड़की ने देखा उनके हाथ में छोटा बच्चा रो रहा था स्थिति कुछ ठीक नहीं लग रही थी। ऑटो घर के दरवाजे पर पहुंचा। मां ऑटो से उतरी थी की बेटी से रहा नहीं गया। बोली ऑटो वाले भैया जरा ऑटो को उनके पास ले लो पास जाकर देखा तो बच्चे को तेज बुखार था और उनके पास खाने के लिए कुछ नहीं था एक तरफ भगवान घर पर आने वाले हैं और दूसरी तरफ यह समस्या बेटी ने सोचा भगवान को मना लूंगी लेकिन यदि इन्हें ऐसे ही हाल में छोड़ दिया गया तो भगवान बिल्कुल भी माफ नहीं करेंगे।
बेटी ने जो-जो खरीदा था सब उनके हाथ में थमा दिया और तो और बचे हुए पचास रुपए भी दे दिए और बोली अभी मेरे पास इतना ही है इसलिए रख लीजिए बारिश हो रही थी तो छाता भी दे दिया और बच्चे को ठंड न लगे इसलिए कंबल भी दे दिया।
वहां से फटाफट घर पहुंचे यह सोचकर कि भगवान आ गए होंगे लेकिन दरवाजे पर मां खड़ी थी बोली आने में इतनी देर क्यों लगा दी बेटी, और यह देख एक और चिट्ठी आई है।
पता नहीं किसकी है बेटी ने पढ़ना शुरू किया उसमें लिखा था..... बेटी.. आज तुमसे मिलकर बहुत खुशी हुई... पहले से दुबली हो गई हो.. लेकिन आज भी उतनी ही सुंदर हो... मिठाई बहुत अच्छी थी और तुम्हारे दिए हुए कंबल से बहुत आराम मिला। छाता देने के लिए धन्यवाद बेटी।
अगली बार मिलते ही लौटा दूंगा बेटी के तो होश उड़ गए निशब्द होकर पीछे मुड़कर सड़क किनारे देखा तो वहां कोई नहीं था चिट्ठी में आगे लिखा था इधर उधर मत ढूंढो मुझे मैं तो कण-कण में हूं जहां पवित्र सोच हो मैं हर उस मन में हूं यदि दिखे कोई जरूरतमंद तो मैं उस हर जरूरतमंद मे हूं बेटी जोर से रो पड़ी और मां को सब बताया दोनों बहुत भावुक हो गए और पूरी रात सो नहीं पाए।
दोस्तों अब आप सभी से एक प्रश्न है यह बेटी सच में गरीब थी जरा सोचिए और अपने दिल से इस सवाल का जवाब दीजिएगा क्योंकि व्यक्ति मरने के बाद अपने साथ पैसे नहीं बल्कि कर्म लेकर जाता है और जरूरी नहीं कि हर पैसे वाला व्यक्ति अच्छे कर्म लेकर जा रहा हो इसीलिए कोशिश करें कि पैसों से अमीर हो या गरीब लेकिन कर्मों से अमीर जरूर बने
Aachaarya Deepak Sikka
*ॐ नमः शिवाय*
*राधा की मौन आरती।*
एक बार राधा जी बरसाने के वन में बैठी थीं।
संध्या का समय था, मंद पवन बह रही थी, और गोकुल से बाँसुरी की मधुर धुन गूँज रही थी।
सखी ने पूछा — “राधे, तुम रोज़ उसी दिशा में क्यों देखती हो?”
राधा मुस्कुराईं —
“क्योंकि वहाँ से स्वर नहीं, स्मृति आती है…
हर स्वर के साथ कृष्ण की एक झलक उतरती है मेरे हृदय में।”
सखी बोली — “पर वो तो आज आए भी नहीं।”
राधा ने आँखें मूँद लीं और बोलीं —
“जब प्रेम सच्चा हो, तब मिलन के लिए देह नहीं,
भाव ही पर्याप्त होता है।
मैं जिस भाव में उन्हें पुकारती हूँ,
वो उसी भाव में प्रकट हो जाते हैं —
कभी हवा की छुअन में,
कभी धूप की किरण में,
कभी बस इस मौन में...”
तभी हवा से एक पुष्प गिरा —
और वह राधा के चरणों में आ टिका।
सखियाँ चकित थीं, पर राधा बस मुस्कुराईं —
“देखो सखियों, आज कृष्ण ने मौन आरती भेजी है।
भावार्थ:
जब हृदय में सच्ची भक्ति और प्रेम हो,
तो भगवान दूर नहीं रहते,
वे हर अनुभूति में उतर आते हैं —
जैसे राधा के हृदय में कृष्ण सदैव बसे हैं।
*आचार्य दीपक सिक्का*
*संस्थापक ग्रह चाल कंसल्टेंसी*
Aachaarya Deepak Sikka
*धनु राशि में अमावस्या*
चंद्रमा धनु राशि के प्रारंभ में सूर्य से युति करता है, मूल नक्षत्र में।
‘मूल’ का अर्थ है जड़—जो हमारे ब्रह्मांडीय उद्गम (इस राशि के माध्यम से देखे जाने वाले आकाशगंगा केंद्र) और हमारे व्यक्तिगत व सामूहिक पारिवारिक तथा प्रजातीय मूलों की ओर संकेत करता है। जैसे-जैसे हम छुट्टियों के समय में प्रवेश करते हैं और उन रिश्तेदारों से पुनः जुड़ते हैं जिनसे पूरे वर्ष भेंट नहीं हो पाती, ये विषय अक्सर उभरकर सामने आते हैं।
मूल नक्षत्र हमें बातों की जड़ तक पहुँचने में सहायता करता है और उन लंबे समय से जमी मान्यताओं को उजागर करता है जिन्हें छोड़ने की आवश्यकता होती है।
इसका प्रतीक—जड़ों का गुच्छा—उपचार की ओर भी संकेत करता है, विशेषकर औषधियों (जड़ी-बूटियों) के माध्यम से।
यह ऐसा समय है जब पारिवारिक घाव भर सकते हैं, किंतु यह प्रक्रिया गहरी पीड़ा भी ला सकती है, क्योंकि दबी हुई बातें सामने आती हैं।
मूल नक्षत्र के अधिष्ठाता देवता निरृति हैं—‘विनाश की देवी’—जो हमें स्मरण कराती हैं कि सत्य के मार्ग में जो भी बाधक है, उसे हटाया जाना चाहिए।
याद रखें कि हर व्यक्ति के पास अपने-अपने सत्य का संस्करण होता है, विशेषकर जब साइडेरियल मिथुन में गुरु वक्री होकर विचारों को और अधिक प्रबल कर रहा हो।
मंगल के अस्त होने और शुक्र के वृश्चिक-धनु संधि को पार करने से तनाव बढ़ सकता है और बहस आसानी से भड़क सकती हैं। शांति बनाए रखने के लिए संवेदनशील विषयों पर चर्चा से बचें और केवल भोजन का आनंद लें—जब तक कि वातावरण साफ़ करना आवश्यक न हो।
यह अमावस्या संक्रांति से एक दिन पहले घटित होती है, जो स्वयं एक महत्वपूर्ण मोड़ है, और गुरु—जो इस अमावस्या का स्वामी है—अपने वक्री चरण के मध्य बिंदु पर तेज़ी से चमक रहा है। अंततः यह काल अपने भीतर के सत्य से पुनः जुड़ने का है, ताकि आप दूसरों के भीतर के सत्य से अधिक गरिमा और सहजता के साथ मिल सकें।
Aachaarya Deepak Sikka
*वैदिक देवता : स्वरूप, वर्गीकरण और प्रमुख विशेषताएँ*
वैदिक देवता भारतीय संस्कृति और धर्म का आधार हैं। वेदों में देवताओं का उल्लेख दिव्य शक्तियों के रूप में किया गया है, जो प्राकृतिक शक्तियों, जीवन-मूल्यों और ब्रह्मांडीय व्यवस्थाओं के प्रतीक हैं।
देवता केवल पूजा के पात्र नहीं, बल्कि वेदों की ऋचाओं में मानव-रूप में चित्रित ऐसे आदर्श हैं, जिनके माध्यम से मानवता को दिशा, प्रेरणा और सुरक्षा मिलती है।
*देवता की परिभाषा*
देवता किसी दिव्य शक्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं। देव वह है-
*जो कुछ देते हैं (दाता)।*
*जो स्वयं प्रकाशमान हैं।*
*जो दूसरों को प्रकाशमान करते हैं।*
*जिनमें असाधारण और दिव्य शक्ति है।*
*जिन्हें अमरता का वरदान प्राप्त है।*
यक्ष के अनुसार, जो लोकों में भ्रमण करते हैं, प्रकाशित होते हैं, और जीवन के सुख-साधनों को प्रदान करते हैं, वे देवता कहलाते हैं।
वेदों में देवताओं को प्राणी के रूप में, मानवीय रूप देकर प्रस्तुत किया गया है तथा प्रत्येक देवता का प्रकृति के किसी तत्व से संबंध जोड़ा गया है, जैसे पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, सूर्य, चंद्रमा, मेघ आदि।
*वैदिक देवताओं का वर्गीकरण*
यक्ष ने वैदिक देवताओं को तीन मुख्य वर्गों में विभाजित किया है:
(a) पृथ्वी-स्थानीय देवताः
अग्नि, सोम, बृहस्पति, त्वष्टा, प्रजापति, विश्वकर्मा, आदिति-दिति देवियाँ, नदियाँ आदि।
(b) अंतरिक्ष-स्थानीय देवताः
इंद्र, वायु, मातरिश्वा, रुद्र, मरुत, पर्जन्य, आपः (जल), अपांनपात, त्रित-आप्त आदि।
(c) घौस्थानीय (आकाश) देवताः
धौस, आदित्य, सविता, सूर्य, मित्र, वरुण, अश्विन, अयर्मा आदि।
*तीन प्रमुख देवता-पृथ्वी के लिए अग्नि, अंतरिक्ष के लिए इंद्र, और आकाश के लिए सूर्य-माने गए हैं।*
*प्रमुख वैदिक देवता*
*1) अग्नि*
भूमिकाः
पृथ्वी-स्थानीय प्रमुख देवता, यज्ञ के माध्यम से देवताओं और मानवों के मध्य सेतु।
ऋग्वेद:
200 सूक्त, 268 नाम।
रूपः
भौतिक (पत्थर, जल, मेघ), मानविकृत (तेजस्वी जबड़े, स्वर्णिम दांत), पशु (वृषभ, अश्व)।
विशेषताएँ:
अग्नि के बिना कोई भी यज्ञ या दैवी कार्य संभव नहीं।
अग्नि सभी देवताओं के लिए द्रव्य ग्रहण करने का माध्यम है।
अग्नि को सात जिह्वाएँ (जीभ) प्राप्त हैं।
अग्नि मानवीय आवासों का प्रतिदिन का अतिथि है।
अथर्ववेद में अग्नि के सात मुख बताए गए हैं।
*2) सोम*
भूमिकाः
औषधियों का राजा, अमरता का द्रव्य, युद्ध में इंद्र के सहयोगी।
ऋग्वेदः
नवम मंडल पेयमान सोम'।
रूपः
द्रव्य (सोमलता से प्राप्त रस), मानव रूप (योद्धा)।
विशेषताएँ:
सोमरस को शक्तिवर्धक, रोगनाशक और बौद्धिक क्षमता बढ़ाने वाला माना गया है।
ऋग्वेद में कहा गया है, "हमने सोमपान किया और अमर हो गए।"
सोमलता के प्राप्तिस्थानः
मुंजवत पर्वत, अंशुमती नदी, हिमालय, महेंद्र, मलय पर्वत आदि।
*3) बृहस्पति*
भूमिकाः
देवताओं के गुरु, बुद्धि और ज्ञान के देवता।
ऋग्वेदः
11 सूक्त।
विशेषताएँ:
बृहस्पति के पास तीर, धनुष, कुल्हाड़ी और रथ जैसे आयुध हैं।
राक्षसों पर विजय में बृहस्पति की प्रमुख भूमिका है।
*4) इंद्र*
भूमिकाः
युद्ध, वर्षा, शासन, आर्यों के रक्षक।
ऋग्वेद:
250 सूक्त।
विशेषताएँ:
इंद्र को पुरंदर, शतक्रतु, नर्य आदि नामों से जाना जाता है। वज्रधारी, सेनापति, गोप (गोपति), इंद्राणी (पत्नी), पृथ्वी (माता)।
रूप:
इंद्र का वर्ण स्वर्णिम, लंबी दाढ़ी और केश। उत्तर वैदिक काल में वर्षा के देवता के रूप में प्रसिद्ध।
Rushil Dodiya
कहेगा फूल हर कली से बार बार
जीना इसी का नाम है
- शैलेंद्र
Rushil Dodiya
जो तुझे जानता न हो
उस से तेरा नाम पूछना
ये मुझे क्या हो गया ?
- गुलज़ार
Rushil Dodiya
जहां तेरी एडी से धूप उड़ा करती थी
सुना है उस चौखट पे अब शाम रहा करती है
- गुलज़ार
सीमा कपूर
बचपन अच्छा था..
कम से कम सच्चा था..
बस हा और ना/
बहस और झगड़े से दूर था!
- सीमा कपूर
Sejal Raval
#લાગણીઓની સફરે
સેજલ રાવલ
Saliil Upadhyay
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Bhavna Bhatt
જય ચેહર મા 🙏
S A Y R I K I N G
मैं पूजता हूँ अपने इश्क़ को, दीये की तरह जलना तो लाजिमी हैं मेरा...
मेरा इश्क़ ही, मेरी इबादत है..... (जिसमें मैं खुद जल कर उसे रोशनी देता हूं और अपने तले अंधेरा रखता हूं)
ज़ख्मी__दिल…सुलगते अल्फ़ाज़
🦋...𝕊𝕦ℕ𝕠 ┤_★__
तमाम उम्र का हासिल था जो, वो
हार आए हम,
तेरी इक मुस्कुराहट पर ख़ुद को
वार आए हम,
━❥
लकीरें हाथ की, मिटती गईं
सजदों में तेरे,
मगर हर ज़ख्म को अपना ही
साज़-ओ-सिंगार आए हम,
━❥
ये दुनिया माँगती है रोशनी अपनी
चरागों से,
मगर आँखों का सारा नूर, तुम पे
वार आए हम,
━❥
सुना था! इश्क़ में अक्सर सँवर
जाते हैं दीवाने,
मगर इस खेल में पाकर भी सब
कुछ हार आए हम,
━❥
कहाँ तक ढूँढती ये तिश्नगी
साहिल के नज़ारे,
तेरी आँखों के दरिया में उतर
उस पार आए हम…🔥
╭─❀💔༻
╨──────────━❥
♦❙❙➛ज़ख़्मी-ऐ-ज़ुबानी•❙❙♦
#LoVeAaShiQ_SinGh☜
╨──────────━❥
ज़ख्मी__दिल…सुलगते अल्फ़ाज़
🦋...𝕊𝕦ℕ𝕠 ┤_★__
सुकून की चाह में अब, दर-बदर
नहीं फिरता,
बिखर गया हूँ मगर टूट कर नहीं
गिरता,
━❥
जो उलझने सताती थीं कभी
अब हमनवा हैं मेरी,
कि इनके बगैर अब, मेरा गुज़ारा
नहीं होता…🔥
╭─❀💔༻
╨──────────━❥
♦❙❙➛ज़ख़्मी-ऐ-ज़ुबानी•❙❙♦
#LoVeAaShiQ_SinGh☜
╨──────────━❥
ज़ख्मी__दिल…सुलगते अल्फ़ाज़
🦋...𝕊𝕦ℕ𝕠 ┤_★__
वही है बेकली मेरी वही बेचैनियाँ
मेरी,
मुकम्मल हो गई अब तो, ये
वीरानियाँ मेरी,
━❥
तसल्ली हार मान कर किनारे बैठ
गई है अब,
सुकून देने लगी हैं मुझको, ये
हैरानियाँ मेरी…🔥
╭─❀💔༻
╨──────────━❥
♦❙❙➛ज़ख़्मी-ऐ-ज़ुबानी•❙❙♦
#LoVeAaShiQ_SinGh☜
╨──────────━❥
kattupaya s
My novel yadhumatra peruveli part 16 will be published on 27/12/25@11am.good night friends. thank you
Deepak Bundela Arymoulik
-आदमी आदमी के बगैर
आदमी आदमी के बगैर
अधूरा सा रह जाता है,
जैसे बिना दीप बाती
अंधेरा मुस्काता है।
कदम बढ़ते हैं तो साथ चाहिए,
सपनों को भी हाथ चाहिए,
एक हाथ से जीवन चलता नहीं,
हर मंज़िल को साथ चाहिए।
किसान की मेहनत, मज़दूर का पसीना,
शिक्षक का ज्ञान, माँ की करुणा,
हर रिश्ता, हर श्रम, हर भावना
आदमी से आदमी की साधना।
कोई राजा हो या हो फकीर,
सबकी राहें जुड़ी हुई हैं,
बगैर आदमी के आदमी की
तक़दीरें टूटी हुई हैं।
इसलिए न घमंड, न दूरी रख,
इंसान से इंसान जुड़ा रह,
क्योंकि इस दुनिया की सबसे बड़ी
पूँजी — आदमी का आदमी है।
आर्यमौलिक
Jatin Tyagi
ठिठुरती दीवारों में जलता था विश्वास,
नन्हे हृदय में था धर्म का उजास।
उम्र छोटी थी, पर साहस विराट,
इतिहास झुका, देख उनका प्रताप।। 1
ज़ोरावर की आँखों में सत्य की ज्योति,
फतेह की वाणी में वाहेगुरु की मोती।
ना झुके, ना डरे, ना मांगी शरण,
आस्था ही थी उनका सबसे बड़ा वरण।। 2
ईंटों में चुनी गई उनकी साँसें,
पर डिगीं नहीं आत्मा की आशाएँ।
मृत्यु भी ठिठकी उस क्षण अपार,
जब बाल हृदय बने धर्म की दीवार।। 3
मैं स्वयं से पूछता हूँ, इस युग में आज,
कहाँ खो गया वो तेज, वो नैतिक साज?
सुविधा के आगे झुकता हर विचार,
और बच्चों ने समझा दिया जीवन का सार।। 4
हे समाज, रखो उन साहिबज़ादों को स्मरण,
जिनका बलिदान सिखाता प्रेम, सत्य और चरण।
धर्म शब्द नहीं— चरित्र का प्रकाश है यही,
वीर बालों से सीखो— निर्भीक प्रेम ही सच्ची रही।। 5
— जतिन त्यागी (राष्ट्रदीप)
InkImagination
Good night friends 🌌🌃
Rushil Dodiya
जे हम तुम चोरी से
बंधे इक डोरी से
जइयो कहां ए हजूर..
- मजरूह
Saurya
रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) को K-4 पनडुब्बी प्रक्षेपित बैलिस्टिक मिसाइल की सफल उपलब्धि पर देश की ओर से हार्दिक बधाई। यह सफलता भारत की स्वदेशी वैज्ञानिक क्षमता, तकनीकी उत्कृष्टता और मजबूत रक्षा सामर्थ्य का सशक्त प्रमाण है।
K-4 मिसाइल भारत की विश्वसनीय न्यूनतम प्रतिरोधक क्षमता को और अधिक सुदृढ़ करती है तथा राष्ट्रीय सुरक्षा को नई मजबूती प्रदान करती है। DRDO के वैज्ञानिकों, इंजीनियरों एवं इससे जुड़े सभी कर्मियों के अथक परिश्रम, समर्पण और राष्ट्रप्रेम को नमन।
यह उपलब्धि आत्मनिर्भर भारत की दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है और भारत को वैश्विक स्तर पर एक सशक्त एवं सुरक्षित राष्ट्र के रूप में स्थापित करती है।
देश को आप पर गर्व है।
जय हिंद 🇮🇳
yeash shah
मंगल दोष : क्या सही क्या गलत।
जब लड़का और लड़की की शादी की बात होती है, तो मंगल दोष के नाम पर लोग ज्योतिषी के पास जाते है, ज्योतिष शास्त्र के जानकार से अक्सर यह सुनने को मिलता है” मंगल भारी है” , “पगड़ी पर मंगल है,” , “चुनरी पर मंगल है”, “ आंशिक मंगल दोष है”। और इनके निवारण के लिए कभी कभी पेड़ या घड़े से शादी करवाई जाती है, हनुमानजी को चोला चढ़ाना और हनुमान चालीसा का पाठ करने की सलाह दी जाती है, कभी केसरिया गणपति की पूजा करवाई जाती है। ज्योतिषी अक्सर यह कहते है, कि मंगल दोष का निवारण २८ वर्ष की आयु के बाद स्वयं हो जाता है, पर कभी भी जातक या उसके माता पिता को यह नहीं बताते कि मंगल दोष कैसे बनता है, या ऐसा कुछ होता भी है या नहीं।
पहले पारंपरिक मान्यता देखते है। किसी की भी कुंडली में १,४,७,८,१२ घर में मंगल हो, तो मंगल दोष कहा जाता है, यदि इन घरों में गुरु से दृष्ट हो तो आंशिक मंगल दोष कहा जाता है। और यह भी मान्यता है, की गुरु से दृष्ट हो कर मंगल दोष नष्ट हो जाता है। कुछ लोग २ और १० वे घर में भी मंगल दोष मानते है, और यह कहा जाता है, की अगर वर को मंगल दोष हो, तो वधू की कुंडली में १,४,७,८,१२ वे घर में शनि होना चाहिए, क्योंकि शनि मंगल को शांत करता है।
अब व्यहवारिक दृष्टि से देखे, आप सोचिए, कुंडली के १२ घर होते है, उसमें से ५ घरों में मंगल दोष कहा है , यानी कि दुनिया के ४२% लोग मांगलिक है, यानी कि विश्व की अंदाजित जन संख्या ८०० करोड़ है, तो ३३६ करोड़ लोग मांगलिक है। इस तर्क से यह साबित होता है, की मंगल दोष के नाम पर जो भी डर या वहम फैलाया है, वह लोगों के अज्ञान से बढ़ा हुआ है।
ज्योतिष में मंगल को प्राकृतिक आवेग जैसे क्रोध और सेक्स का कारक कहा गया है, यह पौरुष और काम इच्छा में वृद्धि को दर्शाता है, “मंगल दोष” यानी व्यक्ति में क्रोध और काम वृत्ति की अधिकता ,ऐसा भी कहा जाता है। अब अपने आवेग को शांत करना या न करना व्यक्ति और उसकी इच्छा पर निर्भर करता है, अगर दांपत्य में तालमेल और प्रेम हो, तो कभी समस्या नहीं होगी। साथी अगर समझदार हो,तो कोई परेशानी नहीं होती। अब रही पूजा पाठ की बात, तो पूजा पाठ हमेशा श्रद्धा और विश्वास से करना चाहिए, किसी दोष या वहम की शांति के लिए भय पूर्वक पूजा करवाने से मन को थोड़े वक्त के लिए राहत मिलती है, इस लिए अंधश्रद्धा से मुक्त हो कर उचित ज्ञान प्राप्त करे।
इस बात पर दूसरे का दृष्टिकोण भिन्न हो सकता है, सभी के मत का स्वागत है।
Nilesh Rajput
इश्क़ और खुदा एक जैसे हैं,
मानो तो हैं… वरना सब बकवास।
vikram kori
।।अधूरा सा वादा।।
वह हर सुबह उसी बस स्टॉप पर मिलती थी,
हाथ में किताब और आँखों में गहरी खामोशी।
मैं कभी हिम्मत नहीं जुटा पाया
कि उससे अपने दिल की बात कह सकूँ,
बस रोज़ उसी सीट पर बैठकर
उसके आने का इंतज़ार करता रहा।
एक दिन वह नहीं आई।
न अगले दिन, न उसके बाद कभी।
बस उसकी कही एक बात याद रह गई—
“कुछ रिश्ते कहे बिना ही पूरे हो जाते हैं।”
आज भी मैं उसी बस स्टॉप पर खड़ा होता हूँ,
शायद इस उम्मीद में नहीं कि वह लौट आए…
बल्कि इस डर में कि
मेरी अधूरी मोहब्बत
कहीं पूरी न हो जाए।
Vikram kori..
Shailesh Joshi
પહેલાંના સમયમાં નાના મોટા હજારો કામ કરતા,
અને બે ચાર જરૂરી જાણકારી મેળવતાં, અને અત્યારે.....પરાણે બે ચાર કામ પણ નથી કરતા, અને એ પણ વેઠ ઉતારતા હોઈએ, નેહાકા નાખતા હોઈએ, કે પછી ચાલે એમ નથી એટલે કરીએ છીએ, ને સામે જાણકારીઓ, અધધધ, વાત જ ન પૂછો પછી એ જાણકારી ભલે આપણા કામની હોય, કે ન હોય, પણ દાડો તો એમાં જ પૂરો કરવાનો, અને કદાચ...જીંદગી પણ🙏
Shailesh Joshi
Priya
फर्क नहीं पड़ता जमाने ने हमें क्या समझा
बस जिससे उम्मीद थी
उसी ने हमें गलत समझा।
वो गाता रहा महफ़िलों में
तुम्हारे हैं ये चांद सितारे
देने को मांगा तो वो लौटा ना सका
कुछ सिक्के भी हमारे
PRIYA...✍️
srishti tiwari
बालक बलिदानी
इक ओर औरंग का दंभ ।
ते दुजी ओर औ नन्हे साहबजादा दा गुरुर था ।
इक ओर गज़वा ए हिन्द का झूठा सपना।
ते दुजी ओर अपने देश ते धरम नू बचौण दा सुरूर था।
इक ओर औ हिन्दुस्तान दा बादशाह जिस ते ओदी औलाद वी नफरत करदी ।
ते दुजी ओर जेडै बलिदान नू अज दुनिया ने मनया।
इक ओर औ नृशंस हत्यारा जिणे हिंदूआ ते सिक्खां नू चुन चुन कर मारया।
ते दुजी ओर औ नन्हे दो बच्चे जिणै ओते वी लोहा मनवाया
इक ओर औ बूढ़ा बकरी चोर ।
ते दुजी ओर औ नन्हे वीर जिणदे दुध दे दांत वी न टुट्या।
खड़े इस बार आमने-सामने डाल इक दूजे दी आंखां च आंखां।
तद बोले औरंग नू तौड्डे मज़हब नू तू ही राखा ।
अस्सी ते है गुरु गोविंद सिंह जी दे पुत्तर ।
जे दे इक इक सिक्ख दे लक्खां ने कुतर।
ए सुण औरंग बोला दोनों ने दीवार में दो चुनवा ।
पर साड्डे शेरां दी हिम्मत नू न पाया ओ झुकवा ।
शहीद हुए ओ वीर हकीकत में थे बचपन दे हकदार।
जी उमर च बच्चे न सीखदे खुद दा करम औ उमर च औ बण गए वतन दे वफादार।
सुना दी ए ‘शान' त्वानू शान ते उन दोनों बालकों दी कहानी।
जै थे हिंद दे बालक बलिदानी।
सृष्टि तिवारी शान
Arun V Deshpande
जिंदगी
------------------------
ना समझो दिल्लगी जिंदगी को जीना
आये दुनिया मे, खुशी से जिंदगी जीना ।
नही है भरोसा इस जिंदगी का
डर हमेशा इंसान के मन मे मौत का ।
है अपनी यह जिंदगी दो सुरो की
एक सूर है जीवन का तो दुसरा मौत का ।
पल पल को कैसे जिये सिखाये जिंदगी
इंसानियत जो जिये वही सही जिंदगी ।
देश के लिये हो निछावर हो जो जिंदगी
मौत भी है नाज जो जिये ऐसी जिंदगी ।।
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कविता- जिंदगी
कवी- अरुण वी. देशपांडे
पुणे ( महाराष्ट्र )
9850177342
Soni shakya
वो मोड़ आज भी वही खड़ा है..
जहां सपने अधूरे रह गये थे..
शहर अपना ही था..
पर लोग धीरे-धीरे पराये हो गये थे..
- Soni shakya
Soni shakya
*जो भी किया दिल की गहराई से किया
इश्क राधा सा और इंतजार मीरा सा किया *
- Soni shakya
Parmar Mayur
जब पर्वत छोटे होने लगें और मूर्तियां बड़ी बड़ी बनने लगे।
थोड़ा दिल से नहीं
दिमाग़ से सोचना होगा।
खेतों की पराली जलने से हवा में जहर फेले,
कंपनियों के धूएं से देश विकास करने लगेगा।
दिल से नहीं,
थोड़ा दिमाग से सोचना होगा।
ख़ुदा बेबस बंदों पर जूल्म हो रहा हो फिर भी कुछ ना कहे,
बस ईशनिंदा से किसी को जिंदा जलाने से खूश होगा ख़ुदा?
थोड़ा दिल से नहीं
दिमाग से सोचना होगा
मीठे दो लफ्जों से वाह वाह बोलती भीड़ को देखा है।
सच्चे लफ्ज़ को करे अनदेखा तो सोचना होगा।
थोड़ा दिल से नहीं,
मुझे दिमाग से सोचना होगा।
Dada Bhagwan
संसार का दोष नहीं है, संसार तो अच्छा है। आपकी समझ उल्टी है उसमें संसार क्या करे? - दादा भगवान
अधिक जानकारी के लिए: https://dbf.adalaj.org/1xqL2Oko
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Paagla
साथ निभाने वाला हाथ होना चाहिए,
सफ़र कितना भी लंबा हो, कट जाता है।
Amir Ali Daredia
કંઈક તો છે મારા મા પણ.જેથી એ મોહી પડ્યા
મારા હોઠો પર હોઠ એણે અમથા નથી જડ્યા.
Shraddha Panchal
ये बहुत हसने वाले लोग,
जब भी भगवान ने बात करते है ना !
तो रो पड़ते है 😊😃🙏
Gajendra Kudmate
वह पल बड़ा तकलीफ भरा होता है
जब लफ़्ज भी ना हो कहने के लिये
जीने की बात तो छोड़िए साहब
जब वजह भी ना हो मरने के लिये
गजेंद्र
Saurya
ज्योति याराजी को हार्दिक बधाई एवं धन्यवाद
प्रिय ज्योति याराजी जी,
आपकी शानदार उपलब्धियों और अथक परिश्रम के लिए आपको हृदय से बधाई। आपने अपनी मेहनत, अनुशासन और दृढ़ संकल्प से भारतीय खेल जगत का मान बढ़ाया है।
देश को आप पर गर्व है। आपकी सफलता न केवल पदक तक सीमित है, बल्कि आप लाखों युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत बन चुकी हैं। अपने जुनून, आत्मविश्वास और संघर्ष से आपने यह सिद्ध कर दिया कि कड़ी मेहनत से हर लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है।
राष्ट्र की ओर से आपको हार्दिक धन्यवाद। भविष्य में और भी ऊँचाइयाँ छूने के लिए शुभकामनाएँ।
जय हिंद 🇮🇳
Shailesh Joshi
પ્રેમપ્રશ્ન - પ્રેમનું મુખ્ય કામ કયું ?
પ્રેમથી ઉત્તર - એજ કે
એકબીજાની ખામીઓ ઢાંકવી, સુધારવી કે પછી
એકપણ ફરિયાદ વગર
ચલાવી લેવી.
- Shailesh Joshi
Saliil Upadhyay
કોઈ પાસે હાથ લાંબો કર્યા વગર જ્યારે તમારા કામ પુરા થતા હોય ત્યારે સમજી લેજો કોઈ અદ્રશ્ય શક્તિ તમારૂં રક્ષણ કરી રહી છે અથવા પૂર્વજોના આશીર્વાદ સાથે ઈશ્વર કૃપા તમારા ઉપર વરસી રહી છે...!
Awantika Palewale
आरंभ प्रणय का हुआ है, हवाओं ने भी रंग पकड़ा है,
ख़ामोशी ने ओढ़ ली बातें, दिल आज खुलकर धड़का है।
आँखों में उतरा है सपना, पलकों ने सच को पहचाना,
तेरी एक हल्की-सी नज़र ने मेरा हर लम्हा बदला है।
अब तक हाथों ने छुआ नहीं, बात अधूरी ही ठहरी है,
फिर भी तेरी मौजूदगी ने साँसों को उत्सव बख़्शा है।
राहें नई हैं, रातें महकी, चाँद भी गवाह बना,
तेरे नाम के दीपक से अँधेरा खुद ही पिघला है।
कहते हैं इश्क़ में दर्द भी हर क़दम साथ चलता है,
पर इस दर्द की हर आहट में कोई मीठा मतलब छुपा है।
khwahishh
अब आंखेँ भी बरसने से इंकार कर रही है।
कोई नई सुबह देखने का इंतजार कर रही है।
ये हवा ये बादल ये फिजा क्यों नहीं मिलती है,
एक दूसरे से इसकी बजह तलाश कर रही है।
ये धड़कने नये मौसम का एतबार कर रही हैं।
- khwahishh
Jyoti Gupta
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khwahishh
भीगी पलकें बादलो से न बरसने की बजह पूंछती है।
कब लोटेंगी बो बहारे पतझड़ से होके गुजरती हवाएं पूंछती है।
गुल से गुलिश्तां तक के सफर की जो दास्तां जमाने भर में मशहूर थी।
नजर आ जाए कोई पुराना नजारा तरसती निगाहों की है गुजरी बहारों से,
बो कब दोहराई जाएंगी कहानियां ये फिजा पूंछती है।
- khwahishh
khwahishh
आसमान नए नजारे ढूंढने निकला है।
बिच समंदर में किनारे ढूंढने को निकला है।
जिस बंजर जमी पे एक सूखा पत्ता नहीं बचा,
उस जमी पे नई बहारे ढूंढे निकला है।
कल तक थी लगी रोनके जिन चोबारों पे,
आज देखो बो चोराहे बने दिखते है।
कोई समझाओ इस बाबरे आसमान को,
ये शहर की पक्की सड़कों पर पुराने गलियारे ढूंढ़ने निकला है।
- khwahishh
Nilesh Rajput
आजाद कर , या बर्बाद कर,
यू खफा रह के, वक्त जाया ना कर।
किस्मतो में ना सही, सपनो में मिला कर,
दो चार मुलाकातों की लकीरों को यू मिटाया ना कर।
यादों की महेफीलो में मुझे बुलाया ना कर,
मेरे दर्द की आवाज को यू सरेआम सुनाया ना कर।
तू जानती है मेरी हर दुआ में तू शामिल है,
पर उस दुआ के बदले यू बददुआ दिया ना कर।
माना साथ छोड़ दिया यू जूठे कसमें खाया ना कर,
अगर ना मिले मुजसा आशिक मिल के मुझे अब सताया ना कर,
सोया हूं मैं कफन में, यू धड़कन सुना के मुझे जगाया ना कर,
बेशकीमती है तुम्हारे आंसू यू गिराके मुझे कर्जदार बनाया ना कर।
हाथ पकड़ना तेरी आदत है,
साथ छोड़ना तेरी फितरत,
तू बन भी जा अगर बेवफा,
मैं करता रहूंगा तुजसे महोब्बत।
Gautam Patel
બીરબલ
અકબરના દરબારમાં નવરત્નો (૧) બીરબલ (૨)
રાજા માનસિંહ, (૩)
રાજા ટોડરમલ, (૪)
અબુલ ફઝલ, (૫)
ફૈઝી, (૬) તાનસેન,
(૭) ખાન ખાનાન,
(૮) હકીમ હુમામ
અને (૯) મુલ્લા દો
પિયાઝા હતા. સૌથી
વધુ બીરબલ પંકાયો, જે
હાજરજવાબી ઉપરાંત
હોશિયાર સેનાપતિ
પણ હતો. બીર એટલે
મગજ અને બલ
એટલે શક્તિ, માટે
બુદ્ધિચાતુર્યને કારણે તે
બીરબલ’ નામ પામ્યો
હતો. મધ્ય પ્રદેશના બ્રહ્મભટ્ટ અર્થાત્ બારોટ પિરવારમાં ૧૫૨૮
દરમ્યાન જન્મેલા બીરબલનું મૂળ નામ મહેશદાસ હતું. શિવદાસ તરીકે પણ તે ઓળખાતો હતો. (શિવ = મહેશ). હિંદી, ફારસી અને સંસ્કૃત ભાષા પર તેનું અદ્ભુત પ્રભુત્વ હતું. સેનાપતિની ભૂમિકામાં તે ઘણાં યુદ્ધો ખેલ્યો, માટે અકબરે તેને નગરકોટનું રાજ્ય આપી રાજાનો ખિતાબ એનાયત કર્યો હતો. ૧૫૮૬માં યુદ્ધમોરચે જ અફઘાનોના હાથે તે માર્યો ગયો.
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Parmar Mayur
मूर्तियां के लिए लड़ती प्रजा पर्वत तुटे तो चुप है,
मूर्ति हंसकर ए कहे, पर्वत का ही तो में अंश हूं।
- Parmar Mayur
Saurya
संघर्ष से भागने वाले
इतिहास नहीं बनाते।
Parag gandhi
*સારા માણસની મૈત્રી ઉત્તમ*
*ગ્રંથની સુંદરતા જેવી છે,*
*જેમ તેનો ઊંડો અભ્યાસ કરીએ,*
*તેમ તેમાંથી વધુ ને વધુ આનંદ આપે છે...*
*શુભ સવાર...☕*
Parag gandhi
*સારા માણસની મૈત્રી ઉત્તમ*
*ગ્રંથની સુંદરતા જેવી છે,*
*જેમ તેનો ઊંડો અભ્યાસ કરીએ,*
*તેમ તેમાંથી વધુ ને વધુ આનંદ આપે છે...*
*શુભ સવાર...☕*
Shailesh Joshi
વ્યવસાયે, આવડતે અને અનુભવે
ભલે "એકબીજાથી" આગળ, હોઈએ કે પાછળ
પરંતુ વાણી વર્તન અને વિચારોથી રહીએ "એકબીજા"ની
સમાંતર
- Shailesh Joshi
kajal jha
"ज़िंदगी की असली उड़ान अभी बाकी है,
ज़िंदगी के कई इम्तिहान अभी बाकी हैं,
अभी तो नापी है मुट्ठी भर ज़मीन हमने,
अभी तो सारा आसमान बाकी है।"
- kajal jha
Dr Darshita Babubhai Shah
मैं और मेरे अह्सास
तक़दीर
जिस को भी चाहा हमारा ना हो सका l
उम्र भर के लिए सहारा ना हो सका ll
होंटों पे मोहब्बत के फ़साने आये थे कि l
हँसना किस्मत को गवारा ना हो सका ll
"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह
संजय कुमार दवे
हर हर महादेव 🙏🚩
Raa
chalo break fast ke liye ready he .
Soni shakya
🙏🙏सुप्रभात 🙏🙏
🌹 आपका दिन मंगलमय हो 🌹
GANESH TEWARI 'NESH' (NASH)
नदी आत्मा, सत्य जल, पुण्य कर्म ज्यों तीर्थ। महापुरुष गाहन करें, समझ इन्हें हरितीर्थ।।
दोहा --370
(नैश के दोहे से उद्धृत)
----गणेश तिवारी 'नैश'
महेश रौतेला
पहले तुम मेरे पते पर रहते थे
अब नहीं हो,
लोग कहते हैं
अब भगवान के पते पर रहते हो,
और मैं तब से चुपचाप सोच रहा हूँ-
कि उनसे क्या पूछना!
*** महेश रौतेला
બદનામ રાજા
સંબંધ માં ઘાયલ થયેલ વ્યક્તિ સોશિયલ મીડિયા માં "ઉડતાતીર" છૂટાં મારે છે...
🤣🤣🤣
Akshay Tiwari
some stories.......
Today I’m leaving this writing platform.
It has been a beautiful journey full of words, emotions, and learning.
I truly enjoyed every moment here and I’m grateful to everyone who supported, read, and encouraged my writing.
Thank you all from the bottom of my heart.
God bless you all.
Akshay Tiwari
Why ???????
Sometimes people judge too early,
before knowing the person,
before talking .....
But I know,
you have a kind heart,
even if the world hasn’t taken the time
to see it yet.
Dear stranger,
special one,
not every soul is meant to hurt,
not every presence carries harm.
Some people arrive quietly,
with soft intentions
and honest eyes,
asking only to be understood.
Every person is not bad,
some are just waiting
for someone
who believes in their goodness.
And today,
even without knowing you fully,
I choose to believe
in yours......
Vivek Ranjan Shrivastava
If Santa Could Truly Distribute Happiness
Vivek Ranjan Shrivastava
Santa in the red cap arrived a little late this time. Perhaps even he now has to stand in long queues at petrol pumps for his reindeer, and the moment he leaves the North Pole, he has to get his Fastag recharged at toll plazas. The old tradition of slipping down chimneys frightens him now, because below him stay awake the eyes of CCTV cameras, and on the wall shines the warning that you are under surveillance. In such a situation, any sensible Santa finds it safer to ring the doorbell and quietly leave. We remain asleep, Santa walks away with his gifts, and perhaps that is why, to fool ourselves with a few moments of artificial happiness, we ourselves wrap gifts and place them under our fake Christmas trees.
The world of children has also changed. Now they want data packs more than chocolates, so that they can live-track their gifts and pray that the signal does not drop while Santa is on the way. Adults have gone even further. They have bought their Christmas trees on EMI, and the lights blinking on them look like stock-market graphs, sometimes rising, sometimes falling, and with every flicker the heart skips a beat, wondering whether the next installment will be paid on time.
On Santa’s sleigh, advertisements now run more than magic. Multinational company logos are pasted on his red clothes as if they have become his new Aadhaar identity. He no longer opens a sack, he swipes cards, and in many places directly transfers money into bank accounts so that along with people’s faith, their votes and support also remain secure. In poor settlements, on the very day Santa arrives, the electricity goes off. Darkness itself becomes their gift wrapper, and children think perhaps this is the new kind of packaging.
Leaders around the world also become Santa several times a year. Sweet voices, red ties, and sacks full of promises but empty inside. Someone promises peace, someone shows dreams of reforms, but their reindeer graze in fields where nothing has been left anymore. Their sleigh bells keep ringing, and the public keeps sliding lower and lower on the slippery ice of hope.
Santa is now troubled by global warming. The snow is melting and his territory is shrinking. Perhaps that is why he has started spending more time in the stock market than at the North Pole. He now slides down not snowy slopes but falling share prices and gets stuck in the chimneys of trust. Gold prices are rising, Santa cannot even sleep, yet staying awake is difficult.
The real question is not whether Santa will come or not. The real question is why we still wait for some Santa or saint to perform miracles for every problem. Do we really need a man in a magical cap to reduce our inflation, pack away our unemployment, and wrap our responsibilities in gift paper. Or do we need that self-confidence which reminds us that there is no shortcut to hard work.
Because Santa’s job was not to provide comforts, but to inspire. He showed the path and left the responsibility of choosing the destination to us. But we became so used to looking towards Santa in every difficulty that we forgot that in reality we ourselves wrap the gifts and place them under our own trees. Children can be entertained for a while, but the dark alleys of life cannot be lit forever by artificial glitter.
And even if Santa returns, he would probably smile and say that he is only a symbol. Happiness, peace, equality, and lasting relief have to be created by you yourselves. I can only ring the bell for you, you have to walk the road yourself.
The real takeaway of this satire is to give up the habit of waiting, to cultivate the courage to ask questions, to remove the wrapping of promises and see the truth, and to pull the sleigh of your own world yourself, because in today’s times, not Santa, but awareness itself is the greatest gift
Sweta Pandey
आसमां में चांद, धरती पर उजाला ...
इस तरह का है, तो बेहतर फ़ासला है ।
- Sweta Pandey
shabdh skhi
दिसंबर तो यू ही बदनाम है,,
छोड़ने वाले महीना नहीं मौक़ा
देखते है ......
Nabiya Khan
एक ख़ूबसूरत शाम का एहसास
शाम…
दिन और रात के दरमियान ठहरने वाला वो नाज़ुक सा वक़्त,
जब सूरज अलविदा कहता है और चाँद आने की आहट देता है।
इस वक़्त फिज़ा में एक अजीब सी ख़ामोशी होती है,
जो दिल के हर कोने को सुकून से भर देती है।
ढलती हुई शाम में आसमान गुलाबी और सुनहरी लिबास ओढ़ लेता है।
हवा में घुली होती है यादों की खुशबू,
और दिल बेइख़्तियार किसी अपने को याद कर बैठता है।
ये शाम जैसे कहती है—
थोड़ा ठहरो, थोड़ा महसूस करो,
ज़िंदगी सिर्फ़ दौड़ का नाम नहीं।
चाय की चुस्की, बालकनी की रेलिंग,
और सामने फैला हुआ आसमान…
इस पल में फ़िक्रें भी हल्की लगने लगती हैं।
शाम हमें सिखाती है कि
हर ढलते सूरज के बाद भी
नई रौशनी का यक़ीन ज़िंदा रहता है।
यही तो है एक ख़ूबसूरत शाम—
जो थके हुए दिल को उम्मीद,
और उलझी हुई रूह को सुकून दे जाती है।
Bhavna Bhatt
મજાકીય જીતેશભાઇ...I miss you bhai
આશુતોષ
(इत्तफाक तो देखे)
उन्हे ढलता हुआ सूरज पसंद है,
और हमे उभरता हुआ चांद.
- આશુતોષ
ज़ख्मी__दिल…सुलगते अल्फ़ाज़
™••..✍️
सौदा बड़ा महँगा पड़ा उसकी झूठी
मोहब्बत का,
जिसे मरहम समझा था वही सबसे
गहरा ज़ख्म निकला,,🔥
ᚔᚓᚓᚓᚓᚓᚓᚓᚓᚓᚓᚓᚓᚓᚓᚓ
↻ ◁ㅤㅤ❚❚ㅤㅤ▷ ↻
ᚔᚓᚓᚓᚓᚓᚓᚓᚓᚓᚓᚓᚓᚓᚓᚓ
==༆☆🇶ⁱʰˢɐ∀ ᭄==
🔘 Must Share 🔘
ज़ख्मी__दिल…सुलगते अल्फ़ाज़
™••..✍️
बदलते हुए वक़्त का इतना मलाल
न था हमें,
हमने तो खुद को हर हाल में ढाल
लिया था,
पर टूट गए हम उस मोड़ पर आकर
ज़ालिम,
जहाँ किसी अपने ने ही गैरों का
लिबास पहन लिया था,,🔥
ᚔᚓᚓᚓᚓᚓᚓᚓᚓᚓᚓᚓᚓᚓᚓᚓ
↻ ◁ㅤㅤ❚❚ㅤㅤ▷ ↻
ᚔᚓᚓᚓᚓᚓᚓᚓᚓᚓᚓᚓᚓᚓᚓᚓ
==༆☆🇶ⁱʰˢɐ∀ ᭄==
🔘 Must Share 🔘
ज़ख्मी__दिल…सुलगते अल्फ़ाज़
🦋...𝕊𝕦ℕ𝕠 ┤_★__
वक़्त की दहलीज पर खड़ा, आज भी
वहीं देखता हूँ,
जहाँ हाथ छूटा था तेरा, मैं आज भी
वहीं ठहरता हूँ,
लोग कहते हैं कि वक़्त हर ज़ख्म भर
देता है,
मगर मैं तो हर गुजरते दिन के साथ
तुझे और गहरा महसूस करता हूँ,
तुम तो मुड़ गए अपनी नई दुनिया की
रौशनी की तरफ,
पर मेरी शामें आज भी तेरे जिक्र की
मोहताज हैं,
वो जो हंसी हम बांटते थे कभी
बेपरवाह होकर,
अब वो बस मेरे तकिये के नीचे दबे
कुछ राज हैं,
कभी-कभी सोचता हूँ कि क्या तुझे
भी हिचकियाँ आती हैं.?
क्या मेरी यादें कभी तेरी नींदों में
खलल डालती हैं.?
या तूने वाकई मुझे किसी पुराने ख़त
की तरह जला दिया,
और अब मेरी परछाइयाँ भी, तुझे
नहीं पहचानती हैं.?
अजीब कशमकश है__तुझे पाने की
हिम्मत नहीं रही,
और तुझे भूल जाने का हौसला, ये
दिल जुटा नहीं पाता,
तू खुश है अपने हाल में शायद यही
तसल्ली है मेरी,
पर ये कमबख्त दिल है कि अपनी
बर्बादी का जश्न मना नहीं पाता,
कभी सोचा न था कि ये ख़ामोशी
इतनी शोर करेगी,
कि तेरे बिना मेरी हर साँस एक बोझ
बनकर रह जाएगी…🔥
╭─❀💔༻
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♦❙❙➛ज़ख़्मी-ऐ-ज़ुबानी•❙❙♦
#LoVeAaShiQ_SinGh☜
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S A Y R I K I N G
कुछ देर और हाथ मिलाते तो क्या जाता तुम्हे तो जाना ही था, कुछ देर रुक जाते तो क्या जाता
GIRLy Quotes
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