1. प्रारंभिक स्वरूप परंपरागत मानसिकता में पूजा–पाठ धर्म का आरंभिक और सबसे प्रचलित रूप है। यह वह अवस्था है जहाँ व्यक्ति ...
जिस दिन मनुष्य ने पहली बार भीतर झाँका — उसे दो धाराएँ दिखीं। एक श्वास के बाएँ बहती हुई, दूसरी दाएँ। और बीच ...
मनुष्य ने जब पहली बार किसी पत्थर को ईश्वर कहा, वह अंधविश्वास नहीं था — वह अदृश्य को छूने की कोशिश ...
धर्म और विज्ञान — दोनों ने मनुष्य को समझने की कोशिश की, पर दोनों ने जीवन को अधूरा देखा। विज्ञान ने ...
यह ग्रंथ किसी विश्वास का प्रतिपादन नहीं करता — यह केवल जीवन को देखने की दृष्टि है। जो भीतर घटता है, ...
तंत्र कहता है — जो ऊर्जा जीवन देती है, वही मुक्ति भी दे सकती है। संभोग कोई पाप नहीं, वह ...
अध्याय १ — शत्रु : जन्म का विज्ञान शत्रु केवल विरोध नहीं, जन्म का द्वार है। भीतर के अंधकार ...
“ईश्वर ‘पाना’ नहीं है — वह भीतर घटित होता है।”ईश्वर सूत्र ईश्वर पाने का कोई उपाय नहीं“ईश्वर ‘पाना’ नहीं ...
जीवनोपनिषद (प्रथम पुस्तक) प्रस्तावना सदियों से मनुष्य सत्य की खोज में है।कभी उसने वेदों का सहारा लिया,कभी उपनिषदों की ...