Vrajesh Shashikant Dave stories download free PDF

द्वारावती - 14

by Vrajesh Shashikant Dave
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14गुल भीतर से रिक्त हुई थी उस घटना को अनेक दिवस व्यतीत हो गए। प्रत्येक दिवस वह किसी ना ...

द्वारावती - 13

by Vrajesh Shashikant Dave
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13गुल द्वारिकाधीश के मंदिर को देखकर मन ही मन ईश्वर से क्षमा माँगने लगी। अनेक मंत्रों का उच्चार करने ...

सूर्यास्त से सूर्योदय तक हिन्दी नाटक

by Vrajesh Shashikant Dave
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द्रश्य – सूर्यास्त का समय। समुद्र का तट । तट पर जन भीड़। भीड़ के कोलाहल द्वारा भीड़ का ...

द्वारावती - 12

by Vrajesh Shashikant Dave
  • 273

12प्रभात के प्रथम प्रहर का अवनी पर आगमन हो रहा था। रात्रि भर उत्सव समुद्र के तट पर ही ...

द्वारावती - 11

by Vrajesh Shashikant Dave
  • 633

11 व्यतीत होते समय के साथ घड़ी में शंखनाद होता रहा ….नौ, दस, ग्यारह, बारह….. एक, दो, तीन, चार….. ...

द्वारावती - 10

by Vrajesh Shashikant Dave
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10 अरबी समुद्र रात्री के आलिंगन में आ गया। द्वारका नगर की घड़ी ने आठबार शंखनाद किया। समुद्र तट ...

द्वारावती - 9

by Vrajesh Shashikant Dave
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9संध्या हो चुकी थी। महादेव जी की आरती करने के लिए गुल मंदिर जा चुकी थी। गुल ने घंटनाद ...

द्वारावती - 8

by Vrajesh Shashikant Dave
  • 1.1k

महादेव की आरती में घंटनाद करने के पश्चात उत्सव वहाँ से चला गया था। समुद्र के मार्ग पर चलते ...

द्वारावती - 7

by Vrajesh Shashikant Dave
  • 774

7गुल समुद्र को देख रह थी। समुद्र की ध्वनि के उपरांत समग्र तट की रात्री नीरव शांति से ग्रस्त ...

द्वारावती - 6

by Vrajesh Shashikant Dave
  • 984

6गुल ने उसे जाते देखा। वह सो गया था। शांत हो गया था। सोते हुए उत्सव के मुख पर ...