क्या आप जानते है महाभारत युद्ध के इन 18 दिनों के रहस्यों को ?
दोस्तों, क्या आप जानते है महाभारत युद्ध के इन 18 दिनों के रहस्यों को ? आज हम इन्हीं रहस्य पर बात करेंगे। तो चलिए शुरू करते हैं -
माना जाता है की महाभारत जैसे भीषण युद्ध में एक मात्र जीवित बचने वाला कौरव युतुत्सु था तथा 24,165 कौरव सैनिक लापता हो गये थे. महाभारत के एक पात्र शल्य , लव कुश के 50 वी पीढ़ी में हुए थे जो महाभारत के युद्ध में कौरवों की पक्ष से लड़े थे।
शोधानुसार यह ज्ञात किया गया है की जब महाभारत का युद्ध हुआ था तब भगवान श्री कृष्ण की आयु 83 वर्ष थी, उन्होंने महाभारत युद्ध के 36 वर्ष बाद अपनी देह त्यागी थी। इस से यह ज्ञात होता है भगवान श्री कृष्ण 119 वर्ष तक धरती में विद्यमान रहे। उन्होंने द्वापर युग के अंत एवं कलयुग के आरम्भ में दोनों के संधि के समय अपना मनुष्य शरीर त्यागा। ज्योतिषिय गणना के अनुसार कलियुग का आरंभ शक संवत से 3176 वर्ष पूर्व की चैत्र शुक्ल एकम (प्रतिपदा) को हुआ था। वर्तमान में 1936 शक संवत है। इस प्रकार कलियुग को आरंभ हुए 5112 वर्ष हो गए हैं।
इस प्रकार भारतीय मान्यता के अनुसार श्रीकृष्ण विद्यमानता या काल शक संवत पूर्व 3263 की भाद्रपद कृ. 8 बुधवार के शक संवत पूर्व 3144 तक है। भारत का सर्वाधिक प्राचीन युधिष्ठिर संवत जिसकी गणना कलियुग से 40 वर्ष पूर्व से की जाती है, उक्त मान्यता को पुष्ट करता है। कलियुग के आरंभ होने से 6 माह पूर्व मार्गशीर्ष शुक्ल 14 को महाभारत का युद्ध का आरंभ हुआ था, जो 18 दिनों तक चला था। आओ जानते हैं महाभारत युद्ध के 18 दिनों के रोचक घटनाक्रम को। महाभारत युद्ध से पूर्व पांडवों ने अपनी सेना का पड़ाव कुरुक्षेत्र के पश्चिमी क्षेत्र में सरस्वती नदी के दक्षिणी तट पर बसे समन्त्र तीर्थ के पास हिरण्यवती नदी के तट पर डाला। कौरवों ने कुरुक्षेत्र के दक्षिणी भाग में वहां से कुछ योजन की दुरी पर एक समतल मैदान में अपना पड़ाव डाला। पांडव और कौरवों दोनों के शिवरों में उत्तम व्यवस्था का इंतजाम किया गया था। उन के हजारो शिवरों में से अनेक शिविर में प्रचुर मात्रा में खाद्य समग्री भरी पड़ी थी, घोड़ो, हाथी एवं रथो की व्यवस्था थी। तथा कुछ शिविर अस्त्र शस्त्र, संख, तथा अन्य युद्ध में प्रयोग होने वाली वस्तुओं से भरी पड़ी थी। वध और शिल्पी भी इन शिविरों में वेतन पर रखे गए थे।
कौरवों की ओर से ये यौद्धा लड़े थे : भीष्म, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, कर्ण, अश्वत्थामा, मद्रनरेश शल्य, भूरिश्र्वा, अलम्बुष, कृतवर्मा, कलिंगराज, श्रुतायुध, शकुनि, भगदत्त, जयद्रथ, विन्द-अनुविन्द, काम्बोजराज, सुदक्षिण, बृहद्वल, दुर्योधन व उसके 99 भाई सहित अन्य हजारों यौद्धा।
पांडवों की ओर थे ये जनपद : पांचाल, चेदि, काशी, करुष, मत्स्य, केकय, सृंजय, दक्षार्ण, सोमक, कुन्ति, आनप्त, दाशेरक, प्रभद्रक, अनूपक, किरात, पटच्चर, तित्तिर, चोल, पाण्ड्य, अग्निवेश्य, हुण्ड, दानभारि, शबर, उद्भस, वत्स, पौण्ड्र, पिशाच, पुण्ड्र, कुण्डीविष, मारुत, धेनुक, तगंण और परतगंण।
पांडवों की ओर से लड़े थे ये यौद्धा : भीम, नकुल, सहदेव, अर्जुन, युधिष्टर, द्रौपदी के पांचों पुत्र, सात्यकि, उत्तमौजा, विराट, द्रुपद, धृष्टद्युम्न, अभिमन्यु, पाण्ड्यराज, घटोत्कच, शिखण्डी, युयुत्सु, कुन्तिभोज, उत्तमौजा, शैब्य और अनूपराज नील. तटस्थ जनपद : विदर्भ, शाल्व, चीन, लौहित्य, शोणित, नेपा, कोंकण, कर्नाटक, केरल, आन्ध्र, द्रविड़ आदि ने इस युद्ध में भाग नहीं लिया।
पितामह भीष्म की सलाह पर दोनों दलों ने एकत्र होकर युद्ध के कुछ नियम बनाए। उनके बनाए हुए नियम निम्नलिखित हैं : -
1. प्रतिदिन युद्ध सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक ही होगा , सूर्यास्त होते ही सब लोग अपने शिविरों की ओर लोट जायेंगे।
2. युद्ध समाप्त होने के पश्चात सभी लोग छल-कपट छोड़कर एक दूसरे के साथ भाइयो वाला व्यवहार करेंगे।
3. जो रथ पर होगा वह दूसरे रथी से ही युद्ध करेगा इसी तरह हाथी वाल हाथी वाले से और पैदल वाले पैदल वालो से।
4. एक वीर से केवल एक ही वीर युद्ध कर सकता है।
5. भय आदि से भागते हुए या शरण में आये शरणार्थियों पर कोई भी अस्त्र-शस्त्र नहीं चलाएगा।
6. जो भी व्यक्ति युद्ध में निहत्था हो जायेगा उस पर भी शस्त्र नहीं चलाया जायेगा।
7. युद्ध में जो व्यक्ति सेवक का कार्य करेगा उस पर कोई अस्त्र शस्त्र का प्रयोग नहीं करेगा।
प्रथम दिन का युद्ध :-महाभारत के प्रथम दिन जब अर्जुन ने दूसरी तरफ खड़ी दुश्मन सेना में अपने ही सगे भाई बन्धुओ ,गुरु , पितामाह आदि को देखा तो उन्होंने कृष्ण से अपने ही सगे संबंधियों के विरुद्ध युद्ध नहीं करने की बात कही तब भगवान श्री कृष्ण उन्हें समझाते हुए गीता का उपदेश दिया। उसी समय भीष्म पितामह ने सभी योद्धाओं से कहा की कुछ ही देर में युद्ध आरम्भ होने वाला है अतः जो भी योद्धा अपना पक्ष बदलना चाहता है वह इसके लिए स्वतंत्र है। तभी कौरव की सेना में से युयुत्सु अपनी सेना लेते हुए पांडवो के पक्ष में हो लिया। ऐसा युधिस्ठर के क्रियाकलापों के कारण सम्भव हुआ। कृष्ण द्वारा अर्जुन को गीता उपदेश देने के पश्चात अर्जुन ने देवदत्त नामक संख बजाकर युद्ध का आरम्भ किया। महाभारत के इस दिन युद्ध में 10 सैनिक मारे गए। भीम ने दुःशासन के साथ युद्ध करा वही अर्जुन पुत्र अभिमन्यु ने भीष्म के साथ युद्ध करते हुए उनके रथ का ध्वजदंड उखाड़ दिया। इस युद्ध में पांडवो को भारी नुक्सान उठाना पड़ा। पांडवो की ओर से लड़ रहे विराट नरेश के पुत्र उत्तर और श्वेत क्रमश शल्य और भीष्म के हाथो मारे गए। भीष्म ने पांडवो की सेना को काफी नुकसान पहुंचाया।
कौन मजबूत रहा :- पहले दिन पांडवो की सेना को भारी नुक्सान पहुंचा तथा कौरवों के सेना उन पर भारी पड़ी।दूसरे दिन का युद्ध :कृष्ण के उपदेश के बाद अर्जुन तथा भीष्म, धृष्टद्युम्न तथा द्रोण के मध्य युद्ध हुआ। सात्यकि ने भीष्म के सारथी को घायल कर दिया। द्रोणाचार्य ने धृष्टद्युम्न को कई बार हराया और उसके कई धनुष काट दिए, भीष्म द्वारा अर्जुन और श्रीकृष्ण को कई बार घायल किया गया। इस दिन भीम का कलिंगों और निषादों से युद्ध हुआ तथा भीम द्वारा सहस्रों कलिंग और निषाद मार गिराए गए, अर्जुन ने भी भीष्म को भीषण संहार मचाने से रोके रखा। कौरवों की ओर से लड़ने वाले कलिंगराज भानुमान, केतुमान, अन्य कलिंग वीर योद्धा मार गए।
कौन मजबूत रहा : दूसरे दिन कौरवों को नुकसान उठाना पड़ा और पांडव पक्ष मजबूत रहा। तीसरे दिन का युद्ध :-कौरवों ने गरूड़ तथा पांडवों ने अर्धचंद्राकार जैसी सैन्य व्यूह रचना की। कौरवों की ओर से दुर्योधन तथा पांडवों की ओर से भीम व अर्जुन सुरक्षा कर रहे थे। इस दिन भीम ने घटोत्कच के साथ मिलकर दुर्योधन की सेना को युद्ध से भगा दिया। यह देखकर भीष्म भीषण संहार मचा देते हैं। श्रीकृष्ण अर्जुन को भीष्म वध करने को कहते हैं, परंतु अर्जुन उत्साह से युद्ध नहीं कर पाता जिससे श्रीकृष्ण स्वयं भीष्म को मारने के लिए उद्यत हो जाते हैं, परंतु अर्जुन उन्हें प्रतिज्ञारूपी आश्वासन देकर कौरव सेना का भीषण संहार करते हैं। वे एक दिन में ही समस्त प्राच्य, सौवीर, क्षुद्रक और मालव क्षत्रियगणों को मार गिराते हैं। भीम के बाण से दुर्योधन अचेत हो गया और तभी उसका सारथी रथ को भगा ले गया। भीम ने सैकड़ों सैनिकों को मार गिराया। इस दिन भी कौरवों को ही अधिक क्षति उठाना पड़ती है। उनके प्राच्य, सौवीर, क्षुद्रक और मालव वीर योद्धा मारे जाते हैं।
कौन मजबूत रहा : इस दोनों ही पक्ष ने डट कर मुकाबला किया।
युद्ध का चौथा दिन :-महाभारत के इस दिन कौरवों की सेना को युद्ध भारी नुक्सान पहुंचा। इस दिन कौरवों ने अर्जुन को अपने बाणों से ढक दिया। परन्तु अर्जुन ने अपने सामर्थ्य से सभी को मार भगाया। भीम ने इस दिन कौरवों के सेना में खलबली मचा के रख दी थी। दुर्योधन ने अपनी गज सेना को भीम को मारने के लिए भेजा परन्तु भीम ने अपने पुत्र घटोत्कच की सहायता से सभी का नाश कर दिया. इस युद्ध में 14 कौरव भी मारे गए। परन्तु राजा भगदत्त द्वारा जल्द ही भीम पर नियंत्रण पा लिया गया। भीम और अर्जुन ने मिलकर भीष्म को कभी कड़ी चुनौती दी।
कौन मजबूत रहा :- इस दिन कौरवों को भारी नुक्सान उठाना पड़ा और पांडवो का पक्ष भारी रहा।
पांचवें दिन का युद्ध :-
श्रीकृष्ण के उपदेश के बाद युद्ध की शुरुआत हुई और फिर भयंकर मार-काट मची। दोनों ही पक्षों के सैनिकों का भारी संख्या में वध हुआ। इस दिन भीष्म ने पांडव सेना को अपने बाणों से ढंक दिया। उन पर रोक लगाने के लिए क्रमशः अर्जुन और भीम ने उनसे भयंकर युद्ध किया। सात्यकि ने द्रोणाचार्य को भीषण संहार करने से रोके रखा। भीष्म द्वारा सात्यकि को युद्ध क्षेत्र से भगा दिया गया। सात्यकि के 10 पुत्र मारे गए।
कौन मजबूत रहा : इस दोनों ही पक्ष ने डट कर मुकाबला किया।
छठे दिन का युद्ध :-कौरवों ने क्रोंचव्यूह तथा पांडवों ने मकरव्यूह के आकार की सेना कुरुक्षेत्र में उतारी। भयंकर युद्ध के बाद द्रोण का सारथी मारा गया। युद्ध में बार-बार अपनी हार से दुर्योधन क्रोधित होता रहा, परंतु भीष्म उसे ढांढस बंधाते रहे। अंत में भीष्म द्वारा पांचाल सेना का भयंकर संहार किया गया।
कौन मजबूत रहा : इस दोनों ही पक्ष ने डट कर मुकाबला किया।
सातवें दिन का युद्ध :-
महाभारत के सातवें दिन कौरवों ने मण्डलाकर व्यूह की रचना करी और पांडवो ने व्रज व्यूह की रचना बनाई। मंडलाकार में एक हाथी के पास सात रथ, एक रथ की रक्षार्थ सात अश्वारोही, एक अश्वारोही की रक्षार्थ सात धनुर्धर तथा एक धनुर्धर की रक्षार्थ दस सैनिक लगाए गए थे। सेना के मध्य दुर्योधन था। वज्राकार में दसों मोर्चों पर घमासान युद्ध हुआ। महाभारत के इस दिन अर्जुन अपनी युक्ति से कौरव सेना में भगदड़ मचा देता है। धृष्टद्युम्न दुर्योधन को युद्ध में हरा देता है। अर्जुन पुत्र इरावान द्वारा विन्द और अनुविन्द को हरा दिया जाता है, भगदत्त घटोत्कच को और नकुल सहदेव मिलकर शल्य को युद्ध क्षेत्र से भगा देते हैं। यह देखकर एकभार भीष्म फिर से पांडव सेना का भयंकर संहार करते हैं। विराट पुत्र शंख के मारे जाने से इस दिन कौरव पक्ष की क्षति होती है।
कौन मजबूत रहा : इस दोनों ही पक्ष ने डट कर मुकाबला किया।
आठवें दिन का युद्ध :-महाभारत के इस दिन कौरवों ने कछुआ व्यूह तो पांडवो ने तीन शिखरों वाल व्यूह रचा। पांडवो द्वारा इस दिन धृष्ट्राज के आठो पुत्रों का वध हो जाता है वही अर्जुन की दूसरी पत्नी उल्पी के पुत्र इरावन का बकासुर के पुत्र दवारा वध कर दिया जाता है। घटोत्कच द्वारा दुर्योधन पर शक्ति का प्रयोग परंतु बंगनरेश ने दुर्योधन को हटाकर शक्ति का प्रहार स्वयं के ऊपर ले लिया तथा बंगनरेश की मृत्यु हो जाती है। इस घटना से दुर्योधन के मन में मायावी घटोत्कच के प्रति भय व्याप्त हो जाता है। तब भीष्म की आज्ञा से भगदत्त घटोत्कच को हराकर भीम, युधिष्ठिर व अन्य पांडव सैनिकों को पीछे ढकेल देता है। दिन के अंत तक भीमसेन धृतराष्ट्र के नौ और पुत्रों का वध कर देता है।
पांडव पक्ष की क्षति : अर्जुन पुत्र इरावान का अम्बलुष द्वारा वध।
कौरव पक्ष की क्षति : धृतराष्ट्र के 17 पुत्रों का भीम द्वारा वध।
कौन मजबूत रहा : इस दोनों ही पक्ष ने डट किया और दोनों की पक्ष को नुकसान उठाना पड़ा। हालांकि कौरवों को ज्यादा क्षति पहुंची।
नौवें दिन का युद्ध :-
महाभारत के इस दिन के युद्ध में कृष्ण के उपदेश के चलते भयंकर युद्ध हुआ जिसमे भीष्म ने अपनी ताकत दिखाते हुए अर्जुन के रथ को जर्जर कर दिया और अर्जुन को घायल। भीष्म के इस भयंकर संहार और अपने रथ को जर्जर अवस्था में देख कृष्ण से रहा नहीं जाता और वे अपने रथ का पहिया लेकर भीष्म की ओर बढ़ते है परन्तु बाद में उन्हें जब अपनी प्रतिज्ञा का ध्यान आता है तो वे शांत हो जाते है। परन्तु इस दिन भीष्म ने पांडवो की सेना को बहुत नुक्सान पहुंचाते है।
कौन मजबूत रहा :- इस दिन कौरवों का पक्ष मजबूत रहता है।
दसवां दिन का युद्ध :-महाभारत के इस दिन भीष्म द्वारा बड़े पैमाने पर पांडवों की सेना को मार देने से घबराए पांडव पक्ष में भय फैल जाता है, तब श्रीकृष्ण के कहने पर पांडव भीष्म के सामने हाथ जोड़कर उनसे उनकी मृत्यु का उपाय पूछते हैं। भीष्म कुछ देर सोचने पर उपाय बता देते हैं। इसके बाद भीष्म पांचाल तथा मत्स्य सेना का भयंकर संहार कर देते हैं। फिर पांडव पक्ष युद्ध क्षेत्र में भीष्म के सामने शिखंडी को युद्ध करने के लिए लगा देते हैं। युद्ध क्षेत्र में शिखंडी को सामने डटा देखकर भीष्म ने अपने अस्त्र त्याग दिए। इस दौरान बड़े ही बेमन से अर्जुन ने अपने बाणों से भीष्म को छेद दिया। भीष्म बाणों की शरशय्या पर लेट गए। भीष्म ने बताया कि वे सूर्य के उत्तरायण होने पर ही शरीर छोड़ेंगे, क्योंकि उन्हें अपने पिता शांतनु से इच्छा मृत्यु का वर प्राप्त है।
पांडव पक्ष की क्षति : शतानीक
कौरव पक्ष की क्षति : भीष्म कौन मजबूत रहा : पांडव
ग्याहरवें दिन का युद्ध :-महाभारत के इस दिन भीष्म के शरशय्या में लेटें पर गुरु द्रोण को कौरवों द्वारा सेनापति नियुक्त किया जाता है ग्यारहवें दिन सुशर्मा तथा अर्जुन, शल्य तथा भीम, सात्यकि तथा कर्ण और सहदेव तथा शकुनि के मध्य युद्ध हुआ। कर्ण भी इस दिन पांडव सेना का भारी संहार करता है। दुर्योधन और शकुनि गुरु द्रोण से कहते है की यदि युधिस्ठर को युद्ध में हराकर बंदी बना लिया जाए तो युद्ध अपने आप समाप्त हो जाएगा उन दोनों के कहने पर गुरु द्रोण युधिस्ठर के साथ युद्ध कर उन्हें हरा देते है परन्तु जब वे उन्हें बंदी बना कर ले जाते है तभी अर्जुन वहां आकर अपनी बनो के वर्षा द्वारा उन्हें रोक देते है। नकुल भी युधिस्ठर के साथ तथा अर्जुन के साथ हो जाने से कौरव उन्हें बंधी नहीं बना पाते।
पांडव पक्ष की क्षति : विराट का वध
कौन मजबूत रहा : कौरव
बारहवें दिन का युद्ध :-
कल के युद्ध में अर्जुन के कारण युधिष्ठिर को बंदी न बना पाने के कारण शकुनि व दुर्योधन अर्जुन को युधिष्ठिर से काफी दूर भेजने के लिए त्रिगर्त देश के राजा को उससे युद्ध कर उसे वहीं युद्ध में व्यस्त बनाए रखने को कहते हैं, वे ऐसा करते भी हैं, परंतु एक बार फिर अर्जुन समय पर पहुंच जाता है और द्रोण असफल हो जाते हैं। होता यह है कि जब त्रिगर्त, अर्जुन को दूर ले जाते हैं तब सात्यकि, युधिष्ठिर के रक्षक थे। वापस लौटने पर अर्जुन ने प्राग्ज्योतिषपुर (पूर्वोत्तर का कोई राज्य) के राजा भगदत्त को अर्धचंद्र को बाण से मार डाला। सात्यकि ने द्रोण के रथ का पहिया काटा और उसके घोड़े मार डाले। द्रोण ने अर्धचंद्र बाण द्वारा सात्यकि का सिर काट लिया। सात्यकि ने कौरवों के अनेक उच्च कोटि के योद्धाओं को मार डाला जिनमें से प्रमुख जलसंधि, त्रिगर्तों की गजसेना, सुदर्शन, म्लेच्छों की सेना, भूरिश्रवा, कर्णपुत्र प्रसन थे। युद्ध भूमि में सात्यकि को भूरिश्रवा से कड़ी टक्कर झेलनी पड़ी। हर बार सात्यकि को कृष्ण और अर्जुन ने बचाया।
पांडव पक्ष की क्षति : द्रुपद
कौरव पक्ष की क्षति : त्रिगर्त नरेश
तेरहवें दिन का युद्ध :-महाभारत के इस दिन कौरवों ने चक्रव्यूह की रचना की। इस दिन दुर्योधन राजा भगदत्त को अर्जुन को व्यस्त बनाए रखने को कहते हैं। भगदत्त युद्ध में एक बार फिर से पांडव वीरों को भगाकर भीम को एक बार फिर हरा देते हैं फिर अर्जुन के साथ भयंकर युद्ध करते हैं। श्रीकृष्ण भगदत्त के वैष्णवास्त्र को अपने ऊपर ले उससे अर्जुन की रक्षा करते हैं। अंततः अर्जुन भगदत्त की आंखों की पट्टी को तोड़ देता है जिससे उसे दिखना बंद हो जाता है और अर्जुन इस अवस्था में ही छल से उनका वध कर देता है। इसी दिन द्रोण युधिष्ठिर के लिए चक्रव्यूह रचते हैं जिसे केवल अभिमन्यु तोड़ना जानता था, परंतु निकलना नहीं जानता था। अतः अर्जुन युधिष्ठिर, भीम आदि को उसके साथ भेजता है, परंतु चक्रव्यूह के द्वार पर वे सबके सब जयद्रथ द्वारा शिव के वरदान के कारण रोक दिए जाते हैं और केवल अभिमन्यु ही प्रवेश कर पाता है। ये लोग करते हैं अभिमन्यु का वध : कर्ण के कहने पर सातों महारथियों कर्ण, जयद्रथ, द्रोण, अश्वत्थामा, दुर्योधन, लक्ष्मण तथा शकुनि ने एकसाथ अभिमन्यु पर आक्रमण किया। लक्ष्मण ने जो गदा अभिमन्यु के सिर पर मारी वही गदा अभिमन्यु ने लक्ष्मण को फेंककर मारी। इससे दोनों की उसी समय मृत्यु हो गई। अभिमन्यु के मारे जाने का समाचार सुनकर जयद्रथ को कल सूर्यास्त से पूर्व मारने की अर्जुन ने प्रतिज्ञा की अन्यथा अग्नि समाधि ले लेने का वचन दिया।
पांडव पक्ष की क्षति : अभिमन्यु
कौन मजबूत रहा : पांडव
चौदहवें दिन का युद्ध :-
महाभारत के इस दिन अर्जुन की अग्नि समाधि वाली बात सुनकर कौरव पक्ष में हर्ष व्याप्त हो जाता है और फिर वे यह योजना बनाते हैं कि आज युद्ध में जयद्रथ को बचाने के लिए सब कौरव योद्धा अपनी जान की बाजी लगा देंगे। द्रोण जयद्रथ को बचाने का पूर्ण आश्वासन देते हैं और उसे सेना के पिछले भाग में छिपा देते हैं। युद्ध शुरू होता है भूरिश्रवा, सात्यकि को मारना चाहता था तभी अर्जुन ने भूरिश्रवा के हाथ काट दिए, वह धरती पर गिर पड़ा तभी सात्यकि ने उसका सिर काट दिया। द्रोण द्रुपद और विराट को मार देते हैं। तब कृष्ण अपनी माया से सूर्यास्त कर देते हैं। सूर्यास्त होते देख अर्जुन अग्नि समाधि की तैयारी करने लगे जाते हैं। छिपा हुआ जयद्रथ जिज्ञासावश अर्जुन को अग्नि समाधि लेते देखने के लिए बाहर आकर हंसने लगता है, उसी समय श्रीकृष्ण की कृपा से सूर्य पुन: निकल आता है और तुरंत ही अर्जुन सबको रौंदते हुए कृष्ण द्वारा किए गए क्षद्म सूर्यास्त के कारण बाहर आए जयद्रथ को मारकर उसका मस्तक उसके पिता के गोद में गिरा देते हैं।
पांडव पक्ष की क्षति : द्रुपद, विराट
कौरव पक्ष की क्षति : जयद्रथ, भगदत्त
पन्द्रहवें दिन का युद्ध :-महाभारत के इस दिन द्रोण के संहारक शक्ति के बढ़ते जाने से पांडव सेना में हाहाकार मच गया। पिता पुत्र ने मिलकर महाभारत युद्ध में पांडवो की हार सुनिश्चित कर दी। गुरु द्रोण के इस तरह पांडवो की सेना को अति शीघ्र नष्ट करते देख अर्जुन ने श्री कृष्ण से उपाय माँगा। तब श्री कृष्ण ने उपाय सुझाते हुए अर्जुन से कहा की गुरु द्रोण को यह सुचना दो की आश्व्थामा मारा गया। गुरु द्रोण यह सुनते ही स्वयं अस्त्र शस्त्र झोड़ देंगे। इसके बाद भीम ने आश्व्थामा नामक हाथी को मार दिया। तथा यह सुचना गुरु द्रोण के कानो तक पहुंचाई। जब यह बात गुरु द्रोण को पता चली तो वे सर्वप्रथम युधिस्ठर के पास गए और उनसे सच जानना चाहा। युधिस्ठर ने कहा हां आश्व्थामा मारा गया है परन्तु ……. युधिस्ठर की पूरी बात कहने से पूर्व ही श्री कृष्ण ने संख इतनी जोर से बजाय की गुरु द्रोण सिर्फ यह सुन पाया की आश्व्थामा मारा गया। गुरु द्रोण के हथियार जमीन पर गिरते ही श्री कृष्ण ने उन पर अर्जुन से बाण चलने को कहा तथा कुछ पलो में ही अर्जुन ने गुरु द्रोण को अपने बाणों से भेद डाला और इस तरह गुरु द्रोण का वध हो गया।
कौरव पक्ष की क्षति : द्रोण
कौन मजबूत रहा : पांडव
सोलहवें दिन का युद्ध :-महाभारत के इस दिन द्रोण के छल से वध किए जाने के बाद कौरवों की ओर से कर्ण को सेनापति बनाया जाता है। कर्ण पांडव सेना का भयंकर संहार करता है और वह नकुल व सहदेव को युद्ध में हरा देता है, परंतु कुंती को दिए वचन को स्मरण कर उनके प्राण नहीं लेता। फिर अर्जुन के साथ भी भयंकर संग्राम करता है। दुर्योधन के कहने पर कर्ण ने अमोघ शक्ति द्वारा घटोत्कच का वध कर दिया। यह अमोघ शक्ति कर्ण ने अर्जुन के लिए बचाकर रखी थी लेकिन घटोत्कच से घबराए दुर्योधन ने कर्ण से इस शक्ति का इस्तेमाल करने के लिए कहा। यह ऐसी शक्ति थी जिसका वार कभी खाली नहीं जा सकता था। कर्ण ने इसे अर्जुन का वध करने के लिए बचाकर रखी थी। इस बीच भीम का युद्ध दुःशासन के साथ होता है और वह दु:शासन का वध कर उसकी छाती का रक्त पीता है और अंत में सूर्यास्त हो जाता है।
कौरव पक्ष की क्षति : दुःशासन
कौन मजबूत रहा : दोनो
सत्रहवें दिन का युद्ध :-
महाभारत के इस दिन शल्य को कर्ण का सारथी बनाया गया। इस दिन कर्ण भीम और युधिष्ठिर को हराकर कुंती को दिए वचन को स्मरण कर उनके प्राण नहीं लेता। बाद में वह अर्जुन से युद्ध करने लग जाता है। कर्ण तथा अर्जुन के मध्य भयंकर युद्ध होता है। कर्ण के रथ का पहिया धंसने पर श्रीकृष्ण के इशारे पर अर्जुन द्वारा असहाय अवस्था में कर्ण का वध कर दिया जाता है। इसके बाद कौरव अपना उत्साह हार बैठते हैं। उनका मनोबल टूट जाता है। फिर शल्य प्रधान सेनापति बनाए गए, परंतु उनको भी युधिष्ठिर दिन के अंत में मार देते हैं।
कौरव पक्ष की क्षति : कर्ण, शल्य और दुर्योधन के 22 भाई मारे जाते हैं।
कौन मजबूत रहा : पांडव
अठारहवें दिन का युद्ध :-अठारहवें दिन कौरवों के तीन योद्धा शेष बचे- अश्वत्थामा, कृपाचार्य और कृतवर्मा। इसी दिन अश्वथामा द्वारा पांडवों के वध की प्रतिज्ञा ली गई। सेनापति अश्वत्थामा तथा कृपाचार्य के कृतवर्मा द्वारा रात्रि में पांडव शिविर पर हमला किया गया। अश्वत्थामा ने सभी पांचालों, द्रौपदी के पांचों पुत्रों, धृष्टद्युम्न तथा शिखंडी आदि का वध किया। पिता को छलपूर्वक मारे जाने का जानकर अश्वत्थामा दुखी होकर क्रोधित हो गए और उन्होंने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर दिया जिससे युद्ध भूमि श्मशान भूमि में बदल गई। यह देख कृष्ण ने उन्हें कलियुग के अंत तक कोढ़ी के रूप में जीवित रहने का शाप दे डाला। इस दिन भीम दुर्योधन के बचे हुए भाइयों को मार देता है, सहदेव शकुनि को मार देता है और अपनी पराजय हुई जान दुर्योधन भागकर सरोवर के स्तंभ में जा छुपता है। इसी दौरान बलराम तीर्थयात्रा से वापस आ गए और दुर्योधन को निर्भय रहने का आशीर्वाद दिया। छिपे हुए दुर्योधन को पांडवों द्वारा ललकारे जाने पर वह भीम से गदा युद्ध करता है और छल से जंघा पर प्रहार किए जाने से उसकी मृत्यु हो जाती है। इस तरह पांडव विजयी होते हैं।
पांडव पक्ष की क्षति : द्रौपदी के पांच पुत्र, धृष्टद्युम्न, शिखंडी
कौरव पक्ष की क्षति : दुर्योधन
कुछ यादव युद्ध में और बाद में गांधारी के शाप के चलते आपसी युद्ध में मारे गए। पांडव पक्ष के विराट और विराट के पुत्र उत्तर, शंख और श्वेत, सात्यकि के दस पुत्र, अर्जुन पुत्र इरावान, द्रुपद, द्रौपदी के पांच पुत्र, धृष्टद्युम्न, शिखंडी, कौरव पक्ष के कलिंगराज भानुमान, केतुमान, अन्य कलिंग वीर, प्राच्य, सौवीर, क्षुद्रक और मालव वीर।
कौरवों की ओर से धृतराष्ट्र के दुर्योधन सहित सभी पुत्र, भीष्म, त्रिगर्त नरेश, जयद्रथ, भगदत्त, द्रौण, दुःशासन, कर्ण, शल्य आदि सभी युद्ध में मारे गए थे।
युधिष्ठिर ने महाभारत युद्ध की समाप्ति पर बचे हुए मृत सैनिकों का (चाहे वे शत्रु वर्ग के हों अथवा मित्र वर्ग के) दाह-संस्कार एवं तर्पण किया था। इस युद्ध के बाद युधिष्ठिर को राज्य, धन, वैभव से वैराग्य हो गया। कहते हैं कि महाभारत युद्ध के बाद अर्जुन अपने भाइयों के साथ हिमालय चले गए और वहीं उनका देहांत हुआ।
बच गए योद्धा : महाभारत के युद्ध के पश्चात कौरवों की तरफ से 3 और पांडवों की तरफ से 15 यानी कुल 18 योद्धा ही जीवित बचे थे जिनके नाम हैं-
कौरव के : कृतवर्मा, कृपाचार्य और अश्वत्थामा, जबकि पांडवों की ओर से युयुत्सु, युधिष्ठिर, अर्जुन, भीम, नकुल, सहदेव, कृष्ण, सात्यकि आदि।